यहां भगवान के प्रसाद भी दो कड़ाहों में बनते हैं, एक दलितों के लिए और एक सवर्णों के लिए

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यूपी किरण ब्यूरो

नई दिल्ली।। भारत के लोकतांत्रिक व्यवस्था में जहां दलितों को सर्वोच्च पद पर भले ही पहुंचा दिया गया हो। लेकिन आज भी छुआ-छूत और भेदभाव अपने चरम पर है। दक्षिण भारत के कई मंदिरों में अब भी भेदभाव की रवायत कायम है।

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कई संगठनों ने इसके खिलाफ आवाज उठाई है। लेकिन अब भी तमिलनाडु, आंध्र, कर्नाटक और केरल के कुछ हिंदू धर्म स्थलों में कथित निचली जातियों के खिलाफ भेदभाव देखा जाता है।

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मद्रास के वीरपंडा पंचायत में चेल्लाई अम्मान के वार्षिक उत्सव के दौरान दो कड़ाहों में हलवा बनता है। दलितों के लिए अलग और सवर्णों के लिए अलग। भेदभाव की यह रवायत बरसों से चली आ रही है।

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मद्रास हाई कोर्ट ने हाल ही में तमिलनाडु में हिंदू मंदिरों में चली आ रही बरसों पुरानी भेदभाव भरी रवायत के खिलाफ कड़ा फैसला दिया है।

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खबर के मुताबिक कोर्ट के जस्टिस के.के. शशिधरन और जी.आर. स्वामीनाथन ने कहा कि मंदिर में अलग-अलग जातियों के लोगों के लिए अलग-अलग बरतनों में प्रसाद नहीं बनेगा। साथ ही अदालत ने अपने फैसले में इस जातिवाद को तुरंत खत्म करने को कहा है।

फोटोः फाइल

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