‘मान का गलन- सुकोमल जीवन’ – आचार्य श्री आर्जव सागर महाराज

img

भोपाल।। अशोका गार्डन जैन मंदिर में चल रहे ससंघ चतुर्मास में आचार्य गूरूवर 108 श्री आर्जव सागर जी महाराज जी के सानिध्य मे दशलक्षण पर्व में आज उत्तम मार्दव पर्व के दूसरे दिन आचार्य श्री ने वताया मान कषाय के अभाव में जो सुकोमल परिणाममय जीवन होता है उसे मार्दव धर्म कहते हैं ।मृदुतामय परिणामों से मानव सभी ओर से सुखी आदरणीय बनता है।

महाराज जी ने ‘दशलक्षण पर्व धर्म’ में उत्तम मार्दव पर्व को बताते हुये कहा कि अपना बड़प्पन दिखाना, आत्म-प्रशंसा करना और दूसरों की निंदा करना या मान कषाय के रूप है। अपने धन, वैभव ,कुल, जाति रूप, बल आदि का गर्व नहीं करना चाहिए। दूसरों को नीचा दिखाने या किसी को तिरस्कृत करने से आपसी झगड़े तनाव बढ़ने से पारस्परिक वात्सल्य के अभाव में मानव का आन्तरिक शुद्धि के अभाव में नैतिक पतन हो जाता है। आचार्य जी ने उदाहरण देते हुये कहा कि जैसे मिट्टी पानी से मिलने पर जितनी सुकोमल कंकड़ पत्थर रहित शुद्ध बनती है उतना ही उसे सुन्दर आकार प्राप्त होता है वैसे ही जब मानी प्राणी धर्म जल से पवित्र कोमल बनता है तब उसे भी सुन्दर गुणमय भगवान जैसा रूप स्वरूप प्राप्त होता है।

उन्होंने आगे बताते हुए कहा कि गुणियों को देखने से मान गलता है और छोटों को देखने से में बड़ा हूँ ऐसा मान बढ़ता है। अतः गुण वृद्धि हेतु हमें ज्ञानियों का समपर्क करना चाहिए। राम मान के अभाव में कुटियों में रहना भी पसंद कर लेते हैं। और मानी रावण का अभिमान देखकर उसका साथ छोड़कर राम के चरणों में आता है यही मार्दव धर्म का फल है।

प्रवक्ता अंकित कंट्रोल ने बताया आज दशलक्षण पर्व के धर्म पर्व उत्तम मार्दव पर्व के दिन चतुर्मास समिति को चांदी का कलश भगवान कि शांतिधारा होने हेतु जो कि जयपुर में जैनागम के अनुसार सुन्दर कलाकृति में बना है ,दो बच्चों ने अपनी जुड़े अभी तक के पैसे से चतुर्मास समिति को भेंट कर आचार्य श्री से आशीर्वाद प्राप्त किया और आचार्य श्री ने दोनों बच्चों से कहा कि इन बच्चों ने पूरी समाज के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया और मोक्ष मार्ग पर आगे बढ़ने का आशीर्वाद दिया।

Related News