img

यूपी किरण ऑनलाइन, खबरों की Update पाने के लिए Facebook पेज @upkiran.news लाइक करें!

लखनऊ ।। सपा संरक्षक नेताजी मुलायम सिंह यादव सोच रहे होंगे कि काश पिछले साल उनके कुनबे में कोहराम नहीं मचा होता और सपा परिवार की तरह ही दो फाड़ की ओर न बढ़ी होती तो शायद आज यूपी में सियासत की तस्वीर जुदा होती है।

आपको बता दें कि यूपी की सत्ता मिलने के बाद जब मुलायम सिंह ने अखिलेश को अपनी गद्दी सौंपी तो मुलायम के फैसले पर सवाल उठे। अखिलेश ने जब 4 साल अपने पिता और चाचाओं के आदेशों का पालन करते हुए सरकार चलाई तो विपक्ष ने उनकी योग्यता पर सवाल उठाए।

पढ़िए- 25 साल बाद सपा-बसपा में अदावत खत्म-दावत शुरू, बीजेपी के आएंगे बुरे दिन!

तो वहीं अखिलेश यादव जब पूरी तरह पार्टी के अध्यक्ष बने और कांग्रेस से यूपी चुनाव में हाथ मिलाया तो खुद मुलायम सिंह को ये साथ पसंद नहीं आई। अखिलेश ने जब चाचा शिवपाल के करीबियों के टिकट काटे तो चाचा को अखिलेश का रूप रास नहीं आया।

यहां तक कि जब यूपी में सपा सत्ता से बेदखल हुई तो सारा ठीकरा अखिलेश यादव के सिर पर ही फोड़ा गया। अखिलेश ने हार के बाद जनता के फैसले का स्वागत किया तो अपने पुराने फैसलों को जायज भी ठहराया। लेकिन अखिलेश फैसला लेने में रुके नहीं।

पढ़िए- गठबंधन को लेकर रामगोपाल यादव ने दिया बड़ा बयान, कहा सपा और बसपा…

आपको बता दें कि बसपा मुखिया के साथ गठबंधन का फैसला उनके सियासी करियर में मील का पत्थर माना जाएगा। दरअसल, पिता की राजनीति की चक्की का आटा खा कर बड़े हुए अखिलेश भी अपने पिता की तरह सियासत के दाव-पेंच में माहिर हो चुके हैं। वो सियासत के तराजू में अवसरों को तौलना सीख चुके हैं।

पढ़िए- ऐसे किया मायावती ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का सम्मान, स्वागत के लिए…

मायावती से उन्हें समर्थन भी मिला और आशीर्वाद भी। 25 वर्ष के सियासी इतिहास में ये नायाब घटना है कि मायावती गेस्ट हाउस की कड़वी यादों से बाहर निकल कर सपा के लिए दोनों सीटों पर ‘Guest Appearance’ के लिए तैयार हो गईं। बस यही टर्निंग प्वाइंट योगी व मौर्या को राजनीति के नेपथ्य में ले आया और सपा की साइकिल को रास्ते पर।

पढ़िए- सपा-बसपा की जीत हुई दुगनी, सीएम योगी और केशव प्रसाद अपने पद से देंगे इस्तीफा

अखिलेश ने विपक्ष को भी एक मंत्र दे दिया है कि दुश्मन को दोस्त बना लो तो ताकत दुगनी हो जाती है। अखिलेश इस कमबैक की वजह से एक बार फिर परिवार में सुल्तान बन चुके हैं। लेकिन गठबंधन की राजनीति की विडंबना ये है कि सत्ता की म्यान में दो तलवारें कभी एक साथ नहीं रह सकती हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो नेताजी-कांशीराम का गठबंधन टूटा नहीं होता।

फोटोः फाइल

इसे भी पढ़िए

Óñ«Óñ┐ÓñÂÓñ¿ 2019: Óñ©Óñ¬Óñ¥-Óñ¼Óñ©Óñ¬Óñ¥ ÓñòÓÑç Óñ©Óñ¥ÓñÑ Óñ«Óñ╣Óñ¥ÓñùÓñáÓñ¼ÓñéÓñºÓñ¿ Óñ«ÓÑçÓñé ÓñÂÓñ¥Óñ«Óñ┐Óñ▓ Óñ╣ÓÑïÓñéÓñùÓÑç Óñ»ÓÑç ÓñªÓñ▓, ÓñàÓñûÓñ┐Óñ▓ÓÑçÓñ Óñ»Óñ¥ÓñªÓñÁ Óñ¿ÓÑç ÓñªÓñ┐Óñ»ÓÑç Óñ©ÓñéÓñòÓÑçÓññ

--Advertisement--