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माहवारी से हर लड़की को गुज़रना पड़ता है। माहवारी के समय स्त्री के शरीर में ‘हॉर्मोंस’ रिलीज होते हैं। इन हॉर्मोंस को विज्ञान की भाषा में ‘Egg’ कहा जाता है। जब ये Egg टूटता है तो उसमें जमा खून और टिश्यूज वजाइना के जरिये शरीर से बाहर निकलता है। इस नैचुरल प्रकिया को माहवारी (Period) कहते हैं। माहवारी को लड़की के यौवन की शुरुआत के रूप में भी माना जाता है। हमारे देश के कई हिस्सो में पहली माहवारी को लेकर कई परंपरायें प्रचलित हैं।

यहाँ आज भी कायम है ये परंपरा, यहाँ शादी में दूल्हा नहीं दुल्हन…

जब ‘सेनेट्री-पैड्स’ जैसी कोई चीज नहीं थी तो माहवारी के समय महिलाओं को इन पांच दिनों या एक सप्ताह तक खुले में खून बहने के लिए मजबूर रहना पड़ता था। उन्हें इस दौरान राहत देने के लिए कुछ रस्में और रीति-रिवाज की शुरूआत की गई जिससे उन दिनों में उनके शरीर को कुछ आराम मिल सके। गुजरते वक्त और साइंस की तरक्की के साथ पीरियड के लिये कुछ उचित उपाय तो उपलब्ध हुये, लेकिन देश के कई पिछड़े इलाकों में आज भी ये परंपरायें चल रहीं हैं।

कर्नाटक में ‘पहली माहवारी’ के दौरान घर और पड़ोस की औरतें लड़की की आरती करतीं हैं और गाने गाती हैं। उसके बाद लड़की को खनन के लिये तिल और गुड़ से बनी डिश ‘चिगली उंडे’ (Chigali Unde) दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इसको खाने से पीरियड में रक्त का बहाव बिना किसी रुकावट के होगा। इस दौरान घर आये मेहमानों को पूजा में चढ़ाये जाने वाले नारियल और पान के पत्ते दिये जाते हैं।

तमिलनाडु में ‘पहले पीरियड’ के समय निभाई जाने वाली परंपरा कर्नाटक से एकदम अलग है। यहां यह परम्परा बड़े स्तर पर और बड़े ठाठ-बाट से मनाई जाती है। इस परंपरा को ‘मंजल निरट्टू विज्हा’ (Manjal Neerattu Vizha) के नाम से जाना जाता है। ये रस्म किसी शादी के समारोह की तरह ही मनाई जाती है। लड़की को इस दौरान सिल्क की साड़ी पहनाई जाती है।

असम में ‘पहली माहवारी’ के दौरान निभायी जाने वाली परंपरा को ‘तुलोनी बिया’ (Tuloni Biya) के नाम से जाना जाता है। इस दौरान लड़की को परिवार से अलग एक कमरे में रखा जाता है, जहां पुरुषों के आने-जाने पर रोक होती है। परम्परा के मुताबिक पुरुष चार दिन तक उस कमरे में न तो जा सकते हैं और न ही उस लड़की का चेहरा देख सकते हैं। दो जोड़ा ‘छाली’ (betel nut) को एक ‘लाल कपड़े’ में बांधकर पड़ोसी के यहां रख दिया जाता है। सात विवाहित महिलायें (जो विधवा न हो) उस लड़की को नहलाती है। फिर वह पड़ोसी के घर में रखी ‘छाली’ की पूजा करती है। लड़की को दुल्हन की तरह जोड़े और गहनें पहनाकर सजाया संवारा जाता है।

केरल में ‘पहले पीरियड’ के शुरुआत के तीन दिनों तक लड़की को सबसे अलग रहना पड़ता है। उसे ऐसे कमरे में रखा जाता है जहां एक दिया या लैंप जल रहा हो। उस दिये के पास पीतल के एक बर्तन में नारियल के फूल रखे जाते हैं।मान्यता है कि उस फूल में जितनी कलियां खिलेंगी उस लड़की को उतने ही बच्चे होंगे।

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