चीन को पटखनी देने के लिए हिंदुस्तान ने बिछाया सड़कों का जाल, जानिए पूरा प्लान

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नई दिल्ली ।। भारत-चीन बॉर्डर पर शुरू से ही सबसे बड़ा मसला कनेक्टिविटी का रहा है। कठिन भौगोलिक परिस्थिति और मौसम यहां सबसे बड़ी चुनौती हैं। लेकिन अब भारत भी इन चुनौतियों पर पार पाने की कोशिशें असर दिखा रही हैं।

अभी तक चीन की तरफ के इन्फ्रास्ट्रक्चर और वहां के बेहतर रोड संपर्क के सामने भारत काफी पीछे रहा है। हालांकि अब भी यह अंतर है लेकिन काफी हद तक संपर्क में सुधार हुआ है। बॉर्डर पर इस साल के अंत तक कई बड़े प्रोजेक्ट पूरे होने हैं। जिससे न सिर्फ उन इलाकों में रहने वाले लोगों को सुविधा होगी, बल्कि लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर सैनिक तुरंत पहुंच और वहां से लौट सकते है।

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तवांग सामरिक दृष्टि से भारत के लिए बेहद अहम है। चीन भी तवांग पर अपना दावा जताता रहा है। यहां की करीब 50 हजार की आबादी और भारतीय फौज के लिए देश के दूसरे हिस्से से रोड कनेक्टिविटी का एक मात्र रास्ता सेला पास के जरिए है। सेला पास तवांग की लाइफ लाइन है। लेकिन सर्दियों में इसके बंद होने पर तवांग और लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर तैनात लोग पूरी तरह देश के दूसरे हिस्सों से कट जाते हैं।

वहीं मौसम खराब होने की वजह से वहां हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल भी नहीं किया जा सकता है। अब इलाके में सेला टनल बनाने का काम शुरू हो गया है, जो कि 36 महीनों में पूरा हो जाएगा। सेला टनल पूरी होने पर तवांग और बॉर्डर का क्षेत्र हर मौसम में एक दूसरे से जुड़ जाएंगे। इसके साथ ही तेजपुर से तवांग का सफर भी करीब 1 घंटा कम हो जाएगा। साथ ही 13 हजार 700 फीट की ऊंचाई वाले इलाके से होकर नहीं गुजरना होगा। पीएम मोदी ने इसी साल 9 फरवरी को इस प्रोजेक्ट की नींव रखी थी।

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देश के उत्तर में बॉर्डर की कनेक्टिविटी बढ़ाने के कई अहम प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है। तवांग से बुमला (एलएसी) सड़क के जरिए महज 37 किलोमीटर दूर है, लेकिन कुछ वक्त पहले तक यह सफर साढ़े तीन घंटे में पूरा होता था। अब वहां कई जगहों पर सड़क का काम पूरा हो गया है, जिससे दूरी करीब 2 घंटे में पूरी हो जाती है। सेना के एक सीनियर अधिकारी के मुताबिक कई जगह अब भी काम चल रहा है।

यहां मौसम सबसे बड़ी चुनौती है और साल में महज दो महीने ही काम करने के लिए मिलते हैं। अरुणाचल प्रदेश में ही तमा चुंग चुंग (टीसीसी) से ताकसिंग जुड़ गया है। इसी रोड का हिस्सा है पासी घाट से ब्रह्मकुंड, जो 180 किलोमीटर लंबा है। इसमें 40 ब्रिज हैं, जिनकी कुल लंबाई सात किलोमीटर है।

लद्दाख में दरबुक-शियोक (डीएस) से दौलत बेगओल्डी (डीबीओ) तक 255 किलोमीटर की रोड इस साल के आखिर तक पूरी हो जाएगी। यह लेह-काराकोरम हाइवे का हिस्सा है। डीएस से डीबीओ तक 37 ब्रिज हैं। एक ब्रिज-केएम 130 है,इस बनाना काफी कठिन था। इसका उद्‌घाटन करने पीएम मोदी जा सकते हैं। यह काम पूरा होने के बाद 12 महीने यह रास्ता खुला रहेगा। रोहतांग टनल का काम भी इस साल के अंत तक पूरा हो जाएगा।

यह टनल 10 हजार फीट की हाइट पर है और 8.8 किलोमीटर लंबी है। इतनी ऊंचाई पर यह दुनिया की सबसे लंबी टनल होगी। इसके ऊपर पहाड़ की लंबाई दो किलोमीटर की है। यहजिस टेक्नोलॉजी से बनाई जा रही है,इसका इस्तेमाल चीन में भी हुआ है। इसके अलावा मनाली-लेह एक्सेस में भी तीन टनल बनाने की योजना है। तीनों टनल मिलकर 33 किलोमीटर की होंगी। इस काम में लगी एक एजेंसी के अधिकारी के मुताबिक अगर टनल 5 किलोमीटर से ज्यादा होती है, तो प्रति किलोमीटर का 400 करोड़ रुपये का खर्च आता है।

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