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लखनऊ ।। UPSIDC के चीफ इंजीनियर अरुण कुमार मिश्रा ने जैसे ही योगी से मिलने की फर्जी खबर मीडिया में फैलाई। एक अखबार ने इस वर्जन के साथ बड़ी स्टोरी भी छाप दी थी। उसके बाद उनके बारे में हर दिन एक न एक नए खुलासे हो रहे हैं। जिस घोटाले की जांच की बात उन्होंने कही है उसको लेकर अब वह खुद ही फंसते हुए दिखाई दे रहे हैं।

अरुण मिश्रा ने कभी देश के सालीसीटर जनरल मुकुल रोहतगी को सुप्रीम कोर्ट में खड़ाकर खुद की बर्खास्तगी का स्टे ले लिया था। वहीं अरुण मिश्रा अब सीएम योगी आदित्यनाथ के विशेष सचिव डॉ. आदर्श सिंह से मिलकर 1100 करोड़ रुपए के घोटाले की आवाज बुलंद कर रहे हैं, लेकिन इस घोटाले का सच कुछ और ही है।

यूपी एसआईडीसी के चीफ इंजीनियर अरुण कुमार मिश्रा ने जिस 1100 करोड़ रुपए के टेंडर में घोटाले का ठीकरा उस समय एमडी रहे अमित घोष के सिर पर फोड़ा है, उसमें से 500 करोड़ रुपए का टेंडर अरुण मिश्रा ने खुद ही अपने चहेते ठेकेदारों को किया है।

अमित घोष अगस्त 2016 से मार्च 2017 तक एमडी रहे। इस दौरान लगभग आठ महीने तक 600 करोड़ रुपए का टेंडर हुआ। ये टेंडर ट्रांस गंगा सिटी और सरस्वती हाइटेक सिटी के अंदर सड़क बनाए जाने को लेकर थीं। मुख्य सड़कों पर अरुण मिश्रा ने कोई काम नहीं किया था, जिससे निवेशकों को साइट तक जाने में परेशानियां होती थीं। यही वजह रही कि अमित घोष ने मुख्य सड़कों का टेंडर किया, जो कुल 600 करोड़ रुपए का था।

अरुण मिश्रा जब बाहर की सड़कों का टेंडर अपने चहेते ठेकेदारों को नहीं दिलवा सके, तो उन्होंने एमडी के कार्यों को लेकर सवाल ही नहीं उठाया, बल्कि अपने करवाए काम को भी एमडी अमित घोष पर डाल दिया। जबकि जो 500 करोड़ रुपए का काम अरुण मिश्रा ने करवाया है, उस समय (अप्रैल से लेकर जुलाई तक) विभाग में एमडी मनोज सिंह थे।

विभाग में अरुण कुमार मिश्रा की दहशत इस कदर हावी है कि कोई भी अधिकारी आधिकारिक रूप से कोई भी जानकारी देने के तैयार नहीं है। एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इस पूरे मामले की जांच होती है, तो अरुण मिश्रा की जेल हो सकती है। क्योंकि उन्होंने अपने चहेते ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने के लिए उन सड़कों का टेंडर पहले कर दिया जिन पर मुख्य सड़क बनने के बाद काम होना था।

यही नहीं जिस अरुण मिश्रा ने मीडिया में खबर दी की आठ महीने में 1100 करोड़ रुपए का काम करवाया गया है। उसकी हकीकत ये है कि 4 महीने में 500 करोड का टेंडर छोटी-छोटी सड़क बनाने के लिए अरुण मिश्रा ने किया है, जबकि 8 महीने में 6 सौ करोड़ का टेंडर बाहरी सड़कों के लिए अमित घोष ने किया था। इस पूरे मामले में यदि जांच हुई तो चीफ इंजीनियर अरुम मिश्रा तो फंसेंगे ही साथ ही मनोज सिंह भी दोषी साबित हो सकते हैं।

कहां का है मामला
यह पूरा मामला इलाहाबाद के सरस्वती हाइटेक सिटी और ट्रांसगंगा उन्नाव कानपुर का है। यहां 1200 एकड़ में परियोजनाएं हैं। यहीं पर मुख्य सड़क का टेंडर न कर छोटी-छोटी सड़कों का टेंडर अरुण मिश्रा ने अपने चहेते ठेकेदारों को देकर काम करवा दिया था। जब मेन रोड का टेंडर अमित घोष ने 600 करोड़ रुपए का किया तो इसमें से अरुण मिश्रा के ठेकेदारों को काम नहीं मिला। इससे नाराज अरुण मिश्रा ने पूरे प्रोजेक्ट में 300 करोड़ रुपए के घोटाले की जांच की चिट्टी आनन-फानन में मुख्यमंत्री के विशेष सचिव डॉ. आदर्श सिंह से विजिलेंस की जांच के आदेश करवा लिए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संज्ञान में आते ही दो निजी सचिवों पर गाज गिर गई और दोनों को ही हटा दिया गया।

मामला ऐसा था कि मुख्यमंत्री के विशेष सचिव ने नियमों के विरुद्ध जाकर खुद ही विजिलेंस की जांच के आदेश कर दिए। अब यह जांच लटक गई है।

कौन करता है विजिलेंस जांच का फैसला
विजिलेंस की जांच के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी (राज्य सतर्कता कमेटी) विचार करती है। यह कमेटी ही जांच की संस्तुति कर सकती है।

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