मरने के बाद हर दलित छात्र मेधावी और लेखक क्यों बन जाता है

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जेएनयू कैंपस

नई दिल्ली ।। क्या मौत ही दलित छात्रों को मेधावी और लेखक बनाती है? यदि ऐसा नहीं है तो हर बार दलित छात्रों के खुदकुशी करने के बाद ही उसके मेधावी और होनहार होने के साथ लेखक बनने की बात क्यों की जाती है। दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के एमफिल के छात्र रजनी मुथुकृष्णन ने सोमवार (13 मार्च) को दिल्ली में फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली। रजनी को भी लेखक और होनहार बताया जा रहा है।

छात्रों के मुताबिक रजनी अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखता था और वह जस्टिस फॉर रोहत वेमुला मूवमेंट का सक्रिय सदस्य था। तमिलनाडु का रहने वाले रजनी जेएनयू में एमफिल कर रहा था।

अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि इस हादसे पर दुख जाहिर करते हुए सामाजिक न्याय पर बनी ज्वॉइंट एक्शन कमेटी के सदस्य ने बताया, ‘हम हादसे की वजह से दुखी हैं। वह एक मेधावी छात्र और अच्छा लेखक था।’ रजनी ने पिछले साल अपने ब्लॉग पर वेमुला की मां राधिका पर एक लेख लिखा था।

रजनी के सुसाइड करने की खबर जैसे ही आई। उसके फेसबुक प्रोफाइल पर पूरे देश की यूनिवर्सिटी के छात्रों ने मैसेज देखे। उन्होंने फेसबुक पर अपनी आखिरी पोस्ट में समानता की बात कही है। उसने लिखा हैं, ‘हर समानता नहीं मिलती तो कुछ नहीं मिलता। एमफिल और पीएचडी के एडमिशन में समानता नहीं है, मौखिक परीक्षा में कोई समानता नहीं है। वहां पर समानता नहीं है।’

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