पीएम मोदी ने सोमवार को लोकसभा को संबोधित करते हुए पार्टी के लिए 370 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। मगर मौजूदा हालात को देखते हुए भाजपा के लिए 370 के आसपास सीटें हासिल करना बहुत मुश्किल है। अगर BJP को ये लक्ष्य हासिल करना है तो उसे 4 बड़ी बाधाओं को पार करना होगा।
सन् 2014 और 2019 में भाजपा ने स्पष्ट बहुमत के साथ केंद्र में सरकार बनाई। 2019 में भाजपा ने 37 फीसदी वोटों के साथ 303 सीटें जीतीं। मगर बीते पांच सालों में हालात काफी बदल गए हैं। विपक्षी दलों के इंडिया अलायंस ने भाजपा के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। इसके साथ ही ये भी संभावना है कि उत्तर भारत में जहां भाजपा का प्रभाव है, वहां भाजपा के लिए चुनाव लड़ना मुश्किल हो जाएगा। उस पृष्ठभूमि में, BJP के सामने 4 प्रमुख बाधाएँ इस प्रकार हैं।
पहली मुश्किल- 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और पंजाब में जबरदस्त जीत हासिल की थी। दिल्ली में भाजपा ने छह सीटों पर जीत हासिल की थी। मगर इस बार हालात काफी बदले हुए हैं। इंडिया अलायंस बनने के साथ ही अगर दिल्ली और पंजाब जैसे राज्यों में आप और कांग्रेस के बीच सीटों का बंटवारा हुआ तो भाजपा का गणित बिगड़ सकता है। हिमाचल प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद से वहां समीकरण भी बदल गए हैं। भाजपा ने पिछली बार जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में मिलकर 3 सीटें जीती थीं। भाजपा के लिए इन सीटों को बरकरार रखना मुश्किल है। हरियाणा में भी 2019 की सफलता दोहराते हुए भाजपा के सामने कड़ी परीक्षा होगी।
दूसरी मुश्किल- 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा उत्तर प्रदेश में एसपी और बीएसपी की चुनौती को मात देते हुए 62 सीटें जीतने में कामयाब रही। 2014 में भाजपा ने यहां 71 सीटें जीती थीं। अब अगर भाजपा को लोकसभा चुनाव में 370 सीटों का लक्ष्य हासिल करना है तो उसे उत्तर प्रदेश में कम से कम 70 से 75 सीटें जीतनी होंगी। उत्तर प्रदेश में फिलहाल बन रहे राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए भाजपा के लिए यह लक्ष्य हासिल करना चुनौतीपूर्ण है।
तीसरी मुश्किल- लोकसभा चुनाव में 370 सीटें जीतने को आतुर भाजपा के लिए तीसरी बाधा पूर्वी भारत से आने की संभावना है। 2019 में भाजपा ने पूर्वी भारत के बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा आदि राज्यों में संतोषजनक प्रदर्शन किया था। भाजपा ने बिहार में 17 सीटें, बंगाल में 18 सीटें और ओडिशा में 8 सीटें जीती थीं। मगर पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद ममता बनर्जी राज्य में भाजपा के बढ़ते प्रभाव को कम करने में सफल रही हैं। इसलिए बिहार में नीतीश कुमार को अपने साथ लेने के बाद भी भाजपा की स्थिति बहुत संतोषजनक नहीं है। ओडिशा में भाजपा का प्रचार तंत्र उतना मजबूत नहीं है। इसलिए अगर भाजपा को मोदी के लक्ष्य के करीब पहुंचना है तो इस क्षेत्र में बीते इलेक्शन में जीती सीटें बरकरार रखनी होंगी।
चौथी चुनौती
दक्षिण भारत में भाजपा को हमेशा उत्तर भारतीयों की पार्टी के तौर पर देखा जाता रहा है। 2019 में 303 लोकसभा सीटें जीतने वाली भाजपा केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में एक भी लोकसभा सीट नहीं जीत सकी। मगर कर्नाटक और तेलंगाना में पार्टी का प्रदर्शन संतोषजनक रहा। अब 370 सीटों के आंकड़े तक पहुंचने के लिए कर्नाटक और तेलंगाना दोनों राज्यों में अच्छा प्रदर्शन करते हुए केरल और आंध्र प्रदेश के साथ तमिलनाडु से ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतनी होंगी। ये मामला फिलहाल मुश्किल लग रहा है।
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