img

Up Kiran, Digital Desk: साल 1985 में एयर इंडिया फ्लाइट 182, जिसे कनिष्क बमबारी के नाम से जाना जाता है, के दुखद दुर्घटनास्थल पर तत्काल बचाव और राहत प्रयासों को एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा था। इस भीषण हादसे में, जो आयरलैंड के तट के पास हुआ था, विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद भड़की भयानक आग ने बचाव कार्यों को बेहद कठिन बना दिया था।

विमान में भरे हुए भारी मात्रा में जेट फ्यूल के कारण आग इतनी भीषण और अनियंत्रित थी कि बचाव दल के लिए मलबे के पास तक पहुँचना लगभग नामुमकिन हो गया था। धधकती लपटों और अत्यधिक गर्मी ने दुर्घटनास्थल को एक ज्वलंत नरक में बदल दिया था, जिससे किसी भी तत्काल तलाशी या जीवित बचे लोगों को खोजने के प्रयासों में गंभीर बाधा आई।

यह आग कई घंटों तक जलती रही, जिससे बचाव अभियान में देरी हुई और मलबे के बड़े हिस्से तक पहुँचने की संभावना कम हो गई। बचावकर्मी दूर से ही स्थिति का आकलन कर पा रहे थे, जबकि पास जाने का हर प्रयास खतरनाक साबित हो रहा था।

जेट फ्यूल के इस भयानक इन्फर्नो ने न केवल शुरुआती बचाव कार्यों को बाधित किया, बल्कि त्रासदी की भयावहता को भी बढ़ा दिया और पीड़ितों की पहचान व मलबे से सुराग जुटाने के काम को भी जटिल बना दिया। यह दुर्घटना के बाद की सबसे बड़ी बाधाओं में से एक थी जिसने उस दुखद दिन के बाद की कार्रवाई को प्रभावित किया।

--Advertisement--