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Up Kiran, Digital Desk: आज डेवलपमेंटल लैंग्वेज डिसऑर्डर (DLD) अवेयरनेस डे है। यह एक ऐसा दिन है जब हम उस खामोशी को आवाज देने की कोशिश करते हैं, जिससे लाखों बच्चे हर रोज गुजरते हैं।

सोचिए, आप कुछ कहना चाहते हैं, लेकिन सही शब्द नहीं मिल रहे। आप अपनी बात समझाने की कोशिश कर रहे हैं, पर कोई समझ नहीं पा रहा। यह कितनी निराशाजनक स्थिति होगी, है न? DLD से जूझ रहे बच्चे हर दिन इसी मुश्किल का सामना करते हैं।

क्या है यह डेवलपमेंटल लैंग्वेज डिसऑर्डर (DLD)?

DLD एक छिपी हुई परेशानी है। इसमें बच्चे को भाषा को समझने और इस्तेमाल करने में कठिनाई होती है। यह कोई दिमागी बीमारी या सुनने की समस्या नहीं है। यह बस दिमाग के उस हिस्से के विकास में थोड़ी देरी है जो भाषा को नियंत्रित करता है। हैरानी की बात यह है कि हर 14 में से 1 बच्चा इससे प्रभावित होता है, यानी एक क्लास में लगभग 2 बच्चे DLD से जूझ रहे हो सकते हैं।

DLD के लक्षण क्या हैं: यह सिर्फ "देर से बोलना" नहीं है। इसके लक्षण हर बच्चे में अलग हो सकते हैं, लेकिन कुछ सामान्य संकेत ये हैं:

अपने हमउम्र बच्चों की तुलना में बहुत कम बोलना।

छोटे-छोटे और अधूरे वाक्य बनाना।

सही शब्द खोजने में संघर्ष करना।

कहानियां सुनाने या बातें समझाने में अटकना।

दूसरों की बातों को समझने में मुश्किल होना।

नए दोस्त बनाने में हिचकिचाना या अकेले खेलना।

क्यों जरूरी है इस पर बात करना?

अक्सर लोग इसे बच्चे का "शर्मीलापन" या "धीमापन" समझकर नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन समय पर मदद न मिलने से यह बच्चे के भविष्य पर गहरा असर डाल सकता है। पढ़ाई में पिछड़ने से लेकर अकेलेपन और चिंता जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैं।

अच्छी खबर यह है कि सही समय पर पहचान और सही मदद (जैसे स्पीच थेरेपी) से इन बच्चों की जिंदगी को पूरी तरह से बदला जा सकता है। वे भी बाकी बच्चों की तरह आत्मविश्वास के साथ अपनी बात कह सकते हैं और अपनी पूरी क्षमता का उपयोग कर सकते हैं।

आइए, इस DLD अवेयरनेस डे पर हम सब मिलकर यह वादा करें कि हम इन बच्चों की खामोशी को समझेंगे और उन्हें अपनी आवाज खोजने में मदद करेंगे।