_381794885.jpg)
Up Kiran, Digital Desk: हमारे देश में सदियों से लोहार, कुम्हार, सुनार, बढ़ई और दर्जी जैसे कारीगर अपने हाथों के हुनर से हमारी जरूरतों को पूरा करते आए हैं. लेकिन समय के साथ, बड़ी मशीनों और कंपनियों के आगे इनका यह पारंपरिक हुनर फीका पड़ता जा रहा था. इन्हीं गुमनाम 'विश्वकर्माओं' को सम्मान, समर्थन और एक नई पहचान देने के लिए शुरू की गई 'पीएम विश्वकर्मा योजना' ने कमाल कर दिया है.
सिर्फ दो साल के अंदर इस योजना से 30 लाख से भी ज्यादा पारंपरिक कारीगर और शिल्पकार जुड़ चुके हैं.
क्या है यह योजना और क्यों है इतनी सफल?
यह योजना सिर्फ लोन देने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह इन कारीगरों को हर तरह से मजबूत बनाने का एक पूरा पैकेज है.
आसान लोन: सबसे बड़ी सफलता यह है कि इस योजना के तहत अब तक 47 लाख से ज्यादा लोन मंजूर किए जा चुके हैं, जिनकी कुल रकम 41,188 करोड़ रुपये है. यह पैसा सीधे इन कारीगरों तक पहुंचा है, जिससे वे अपने औजार खरीद सके हैं, दुकान को बेहतर बना सके हैं और अपने काम को बड़ा कर सके हैं.
ट्रेनिंग और मॉडर्न औजार: योजना के तहत इन कारीगरों को उनके काम की आधुनिक ट्रेनिंग दी जाती है. साथ ही, नए और बेहतर औजार खरीदने के लिए सरकार की तरफ से मदद भी मिलती है, जिससे वे आज के बाजार के हिसाब से अच्छी क्वालिटी का सामान बना सकें.
हचान और सम्मान: इस योजना से जुड़ने वाले हर कारीगर को एक पहचान पत्र और सर्टिफिकेट दिया जाता है, जिससे उन्हें 'विश्वकर्मा' होने पर गर्व महसूस होता है और उनके काम को एक औपचारिक पहचान मिलती है.