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Up Kiran, Digital Desk: जैसे-जैसे बिहार चुनाव 2025 नज़दीक आ रहा है, राज्य की राजनीति फिर चर्चा में है। चुनाव आयोग ने तारीख़ों का ऐलान कर दिया है – दो चरणों में वोटिंग होगी, 6 और 11 नवंबर को। नतीजे 14 नवंबर को आएंगे। लेकिन इस चुनावी मौसम में बिहार के उस राजनीतिक दौर को भूलना मुश्किल है जब केवल दो साल में चार मुख्यमंत्री बदले गए थे।
क्या था 1967-1969 का 'CM चेंज' ड्रामा?
बिहार के राजनीतिक इतिहास में चौथी विधानसभा (1967-1969) को सबसे अस्थिर दौर माना जाता है। इस समय सत्ता इतनी तेजी से बदली कि दो साल में चार नेताओं ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। यह एक ऐसा वक्त था जब सरकारें गिरती गईं और गठबंधन बनते-बिगड़ते रहे।
महामाया प्रसाद सिन्हा – 5 मार्च 1967 से 28 जनवरी 1968 (329 दिन)
सतीश प्रसाद सिंह – 28 जनवरी 1968 से 1 फरवरी 1968 (सिर्फ 5 दिन)
बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल – 1 फरवरी 1968 से 22 मार्च 1968 (50 दिन)
भोला पासवान शास्त्री – 22 मार्च 1968 से 29 जून 1968 (99 दिन)
इतने कम समय में चार बार मुख्यमंत्री बदलना भारत में कम ही देखने को मिला है। इससे न सिर्फ जनता भ्रमित हुई, बल्कि पूरे देश में बिहार की राजनीति की स्थिरता पर सवाल उठे।
2025 में फिर से इतिहास दोहराने के संकेत?
बिहार में मौजूदा राजनीति फिर से बदलाव के मुहाने पर खड़ी दिख रही है। इस समय NDA के पास 131 सीटें हैं, जिनमें भाजपा (80), जदयू (45), हम (4) और 2 निर्दलीय शामिल हैं। वहीं महागठबंधन के पास 111 सीटें हैं – राजद (77), कांग्रेस (19), भाकपा माले (11), माकपा (2), भाकपा (2)।
2020 के चुनावों में RJD सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी लेकिन सरकार BJP-JDU गठबंधन ने बनाई। अब गठबंधन टूट-फूट और नई रणनीतियों के दौर से गुजर रहे हैं।
बिहार की जनता क्या दोहराएगी 1967 का इतिहास?
बदलते गठबंधनों और आपसी खींचतान को देखते हुए सवाल उठता है – क्या फिर होगा ‘CM बदलो’ का खेल? क्या बिहार की जनता इस बार स्थिर सरकार चुनेगी या फिर 1967 जैसे अस्थिर दौर की वापसी होगी?