
Up Kiran, Digital Desk: पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है। इस माहौल के बीच, भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर का एक बयान काफी चर्चा में है। उनके बयान से साफ है कि भारत अपनी विदेश नीति में 'स्ट्रैटिजिक ऑटोनॉमी' यानी रणनीतिक स्वायत्तता की नीति से जरा भी पीछे हटने वाला नहीं है।
नई दिल्ली में आयोजित आर्कटिक सर्किल इंडिया फोरम 2025 में बोलते हुए, जयशंकर ने किसी देश या नेता का नाम लिए बिना, बिल्कुल साफ शब्दों में कहा कि "भारत पार्टनर (भागीदार) चाहता है, प्रीचर (उपदेशक) नहीं।" उन्होंने आगे जोड़ा, "खासकर, हमें वैसे उपदेशक तो बिल्कुल नहीं चाहिए जो अपने लिए कोई नियम नहीं रखते और दूसरों को बताते रहते हैं कि क्या करना है और क्या नहीं।"
क्या है भारत का नया अंदाज़ और 'स्ट्रैटिजिक ऑटोनॉमी'?
विदेश मंत्री जयशंकर का यह बेबाक अंदाज़ भारत और दुनिया, दोनों के लिए नया है। जहां भारतीय इस आत्मविश्वास भरे रुख की तारीफ कर रहे हैं, वहीं दुनिया के उन देशों को यह बात चुभ सकती है, जिन्हें दूसरों पर अपनी चलाने की आदत रही है।
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने भारत की विदेश नीति को एक नई दिशा दी है। भारत ने अपने सभी सहयोगी देशों के लिए एक लक्ष्मण रेखा खींच दी है – हम आपसी सहयोग से तरक्की करेंगे, लेकिन कोई किसी को अपनी शर्तें मानने पर मजबूर नहीं करेगा। अंतरराष्ट्रीय संबंधों की भाषा में इसी को 'स्ट्रैटिजिक ऑटोनॉमी' (Strategic Autonomy) यानी रणनीतिक स्वायत्तता कहा जाता है।
आसान भाषा में 'स्ट्रैटिजिक ऑटोनॉमी' का मतलब:
इसका सीधा सा मतलब है कि कोई देश अपनी विदेश नीति, सुरक्षा और आर्थिक फैसले बिना किसी बाहरी दबाव के, स्वतंत्र रूप से लेता है। वह किसी दूसरे देश, देशों के समूह (गठबंधन) या किसी संस्था के दबाव में आकर अपने महत्वपूर्ण फैसले नहीं बदलता। इससे देश को अपने हितों और अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर काम करने की आज़ादी मिलती है, जिससे वह दुनिया में अपनी स्थिति मजबूत कर सके और किसी एक महाशक्ति पर निर्भर न रहे।
भारत कैसे अपनाता है यह नीति?
अब इस बात पर शायद ही किसी को शक हो कि भारत स्वतंत्र विदेश नीति पर चलता है या किसी के दबाव में। पिछले कुछ सालों में भारत ने कई मौकों पर न सिर्फ स्वतंत्र फैसले लिए, बल्कि दुनिया को साफ संदेश भी दिया कि वह किसी के दबाव में अपने हितों की बलि नहीं देगा।
रूस-यूक्रेन युद्ध उदाहरण: जब रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ, तो दुनिया खेमों में बंटने लगी। भारत पर पश्चिमी देशों का भारी दबाव था कि वह रूस के खिलाफ जाए। लेकिन भारत ने न सिर्फ दबाव को अनदेखा किया, बल्कि अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के लिए रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदना जारी रखा। वहीं दूसरी तरफ, भारत ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन से बातचीत में यह कहने से भी संकोच नहीं किया कि 'यह युद्ध का युग नहीं है'। इस तरह भारत ने न अमेरिका के नेतृत्व वाले गुट का दबाव माना और न ही आंख मूंदकर रूस का समर्थन किया। उसने वही किया जो भारत के हित में था।
बदल गया है ज़माना:
यही रणनीतिक स्वायत्तता भारत को यह आज़ादी देती है कि वह रूस से हथियार खरीदे, अमेरिका के साथ रक्षा सहयोग करे और क्वाड (Quad) जैसे समूहों का हिस्सा भी बने – और यह सब बिना किसी एक पक्ष की तरफ पूरी तरह झुके हुए। इस नीति का मूल मंत्र है – अपना हित सबसे ऊपर और साझेदारों के साथ बराबरी का रिश्ता, जहां दोनों का फायदा हो। वो ज़माना गया जब कोई एक देश फायदा उठाए और दूसरा देखता रह जाए।
पाकिस्तान से निपटने में कैसे मददगार?
इसी स्ट्रैटिजिक ऑटोनॉमी के कारण आज भारत, पाकिस्तान की आतंकी हरकतों का जवाब देने के लिए कोई भी फैसला लेने को आज़ाद है। भारत को यह चिंता करने की ज़रूरत नहीं है कि अगर वह पहलगाम हमले का बदला लेता है, तो अमेरिका या यूरोप का कोई बड़ा देश नाराज़ हो जाएगा। बल्कि, पूरी दुनिया ने उस आतंकी हमले की निंदा की और कहा कि भारत को अपनी सुरक्षा के लिए ज़रूरी कदम उठाने का पूरा अधिकार है। यानी, अगर भारत आतंकवाद के गढ़ पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करता है, तो उसे अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने का कदम ही माना जाएगा।
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