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Up Kiran, Digital Desk: भारत के इतिहास का वह काला अध्याय, जब 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी (आपातकाल) की घोषणा की थी, तब लोकतंत्र को निलंबित कर कई विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया था। उन नेताओं में से एक थे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता और पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, जिन्हें कर्नाटक के बेंगलुरु (अब बेंगलुरु) स्थित सेंट्रल जेल में हिरासत में रखा गया था।

यह किस्सा आडवाणी की अपनी आत्मकथा "माई कंट्री, माई लाइफ" में भी वर्णित है, जहाँ उन्होंने इमरजेंसी के दौरान अपने कारावास के अनुभव साझा किए हैं। आडवाणी के साथ, अटल बिहारी वाजपेयी, जगन्नाथ राव जोशी और सुरेंद्र मोहन जैसे प्रमुख नेता भी इसी बेंगलुरु सेंट्रल जेल में बंद थे। उनकी गिरफ्तारी तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लोकतंत्र को निलंबित करने और मौलिक अधिकारों को छीनने के खिलाफ उनके मुखर विरोध के कारण हुई थी।

आडवाणी के अनुसार, बेंगलुरु की जेल का अनुभव अन्य जेलों की तुलना में काफी अलग और अपेक्षाकृत आरामदायक था। उन्होंने अपनी किताब में इसे 'रिसॉर्ट' जैसा बताया है, जहाँ उन्हें अख़बार, रेडियो और किताबें पढ़ने की अनुमति थी, जो उस समय के कई राजनीतिक बंदियों को नहीं मिलती थी। उन्होंने अपनी आत्मकथा में कर्नाटक सरकार और जेल अधिकारियों के इस मानवीय व्यवहार के लिए विशेष रूप से प्रशंसा की है। यह उन दिनों की बात थी जब अन्य राज्यों की जेलों में बंद राजनीतिक बंदियों को अक्सर कठोर परिस्थितियों का सामना करना पड़ता था।

आडवाणी का बेंगलुरु में बिताया गया यह समय उनके राजनीतिक जीवन में एक निर्णायक अनुभव रहा, जिसने उन्हें भारतीय लोकतंत्र और संवैधानिक मूल्यों के लिए अपने संघर्ष को जारी रखने की प्रेरणा दी। यह घटना भारतीय लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी और आज भी उन दिनों की याद दिलाती है जब देश के कई प्रमुख नेताओं को अपनी आवाज़ उठाने के लिए जेल जाना पड़ा था।

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