
Up Kiran, Digital Desk: अंतरराष्ट्रीय राजनीति और राजनयिक रिश्तों में अक्सर कुछ ऐसे फैसले होते हैं जो पूरी दुनिया का ध्यान खींचते हैं। हाल ही में ऐसा ही एक फैसला अफगानिस्तान (Afghanistan) के विदेश मंत्री (Foreign Minister) अमीर खान मुत्तकी (Amir Khan Muttaqi) ने लिया। मुत्तकी भारत दौरे पर थे और अपने इस अहम दौरे के दौरान वह अचानक से दारुल उलूम देवबंद (Darul Uloom Deoband) पहुँचे, जो भारत के मुसलमानों के सबसे प्रतिष्ठित धार्मिक और शैक्षणिक संस्थानों में से एक है।
उनके इस दौरे ने सभी राजनयिकों और मीडिया का ध्यान आकर्षित किया है, क्योंकि उनका सीधा मकसद भारत (India) के साथ मजबूत संबंधों (Stronger Ties) की इच्छा जताना था।
देवबंद का दौरा क्यों है इतना खास?
यह सर्वविदित है कि दारुल उलूम देवबंद की अपनी एक वैश्विक पहचान (Global Identity) है और मुसलमानों पर इसका बड़ा प्रभाव है। ऐसे में अफगानिस्तान के एक राजनेता का वहाँ जाना साफ़ संकेत देता है कि मुत्तकी भारतीय उपमहाद्वीप में मौजूद धार्मिक और सांस्कृतिक जड़ों के माध्यम से भारत सरकार और भारत की जनता दोनों के साथ रिश्तों में सुधार लाना चाहते हैं।
दोस्त और भाईचारे पर जोर: अपने इस दौरे के बाद मुत्तकी ने मीडिया को यह बयान (Statement) दिया कि अफगानिस्तान भारत के साथ 'और मज़बूत संबंधों' की इच्छा रखता है। उन्होंने दोस्ती (Friendship) और भाईचारे पर ज़ोर दिया, और यह भी कहा कि भारत इस पूरे क्षेत्र में विकास और स्थिरता लाने में बड़ी भूमिका निभा सकता है।
सद्भावना पहल:अफगानिस्तान देवबंद के इस धार्मिक केंद्र के माध्यम से भारतीय मुसलमानों के भीतर एक 'सद्भावना' (Goodwill) बनाना चाहता है, जो कहीं न कहीं उनके राजनीतिक हितों (Political Interests) को भी पूरा कर सके।
मुत्तकी के इस कदम से यह तो साफ है कि वह अपने देश और भारत के बीच बन रही दूरी को मिटाना चाहते हैं। अब देखना यह है कि उनकी इस राजनयिक और धार्मिक रणनीति को भारत सरकार किस नज़र से देखती है।