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सपा पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के इलेक्शन न लड़ने की चर्चाएं तेज हो गई हैं। कुछ दिन पहले कन्नौज सीट से उनके इलेक्शन लड़ने की खबरें थीं, मगर इस सीट से उनके भतीजे तेजप्रताप यादव को टिकट दे दिया गया समाजवादी पार्टी चीफ ने हाल ही में ऐलान किया था कि अखिलेश यादव  ही इलेक्शन लड़ेंगे, परंतु ऐसा हुआ नहीं।

यादव साल दो हज़ार से हर लोकसभा इलेक्शन लड़ते रहे हैं। जब की वो सन् 2014 में चुनाव नहीं लड़े थे। तब वो up के सीएम थे। अखिलेश यादव कन्नौज, आजमगढ़, फिरोजाबाद से सांसद रह चुके हैं। कन्नौज से इलेक्शन लड़ रहे तेज प्रताप यादव मैनपुरी से सांसद रह चुके हैं। मुलायम सिंह यादव 2014 में 2 सीटों पर विजय हुए थे।

आजमगढ़ सीट उन्होंने अपने पास रखी मगर मैनपुरी से इस्तीफा दे दिया। इस सीट पर इसके बाद उपचुनाव हुए और तेज प्रताप यादव विजय रहे। मगर दो हज़ार 19 के लोकसभा चुनाव में सपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो पार्टी का बीएसपी और आरएलडी से गठबंधन था। तेज प्रताप की पैरवी डिंपल यादव ने भी की। तेज प्रताप यादव निरंतर हाईकमान से टिकट की मांग कर रहे थे। अखिलेश यादव की सांसद पत्नी डिंपल यादव भी उनकी पैरवी कर रही थीं।

बता दें कि तेज प्रताप सिर्फ अखिलेश के भतीजे नहीं बल्कि लालू प्रसाद यादव के दामाद भी हैं। उनके टिकट के लिए लालू ने भी अखिलेश से कहा था। हालांकि कन्नौज से समाजवादी पार्टी का हर छोटा बड़ा नेता चाहता था कि अखिलेश यादव ही चुनाव लड़ें।

सपा में गुटबाजी और कलह जोरो पर

कन्नौज में पार्टी के भीतर गुटबाजी और कलह जोरो पर है। तेजप्रताप यादव को टिकट देने से पहले उन्होंने सारी समस्याएं दूर की। एक दूसरे के खिलाफ काम करने वाले पार्टी नेताओं के दिल जोड़े। अखिलेश जानते हैं कि कन्नौज का इलेक्शन पहले जैसा आसान नहीं रहा। पिछले लोकसभा इलेक्शन में बसपा सपा का गठबंधन था। इसके बावजूद भाजपा का कमल खिला था। डिंपल यादव को भारी वोटों से हार का सामना करना पड़ा।

अखिलेश जानते थे कि यदि वो इलेक्शन लड़े तो फिर बीजेपी उन्हें हराने के लिए पूरी ताकत लगा देगी। ऐसे में उन्हें कन्नौज में ज्यादा टाइम देना पड़ता। आजम खान के जेल में जाने और नेताजी के निधन के बाद चुनाव प्रचार की पूरी जिम्मेदारी अब उन्हीं पर है। ऐसे में वो कोई रिस्क नहीं लेना चाहते। इसीलिए उन्हें लड़ने के बदले लड़ाना बेहतर लगा।
 

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