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Up Kiran, Digital Desk: भारत और अमेरिका के रिश्तों में इन दिनों जो तल्ख़ी दिखाई दे रही है, वह अचानक नहीं आई है। हाल के दिनों में जिस तरह से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियां भारत को लेकर कड़ी होती जा रही हैं, उससे दोनों देशों के बीच तनाव गहराता दिखाई दे रहा है। कई लोग इस घटनाक्रम को अचानक मान रहे हैं, लेकिन अमेरिका के वरिष्ठ विदेश नीति विश्लेषक रस्ट कोहले का कहना है कि ये सब यूं ही नहीं हुआ।

रस्ट कोहले ने अपनी हालिया टिप्पणी में एक दिलचस्प पहलू रखा है। उनके मुताबिक, वर्तमान अमेरिकी प्रशासन जो भी कर रहा है, उसकी जड़ें पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन के कार्यकाल में ही बोई जा चुकी थीं। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत और अमेरिका के बीच मतभेद की शुरुआत साल 2024 की शुरुआत में हुई थी, जबकि ट्रंप उस समय सत्ता में नहीं थे।

बाइडेन से शुरू हुई दूरी, ट्रंप ने दिया और तेज़ी से अंजाम

रस्ट कोहले का विश्लेषण बताता है कि बाइडेन प्रशासन भारत के प्रति समर्थन दिखाता रहा, खासकर चीन को लेकर अमेरिका की रणनीति में भारत की भूमिका अहम रही। लेकिन जब भारत ने अमेरिकी उम्मीदों के मुताबिक कदम नहीं उठाए, तो वॉशिंगटन में भारत को लेकर असंतोष गहराने लगा। 2023 के अंत तक भारत को अमेरिका का रणनीतिक सहयोगी माना जा रहा था, लेकिन 2024 में यह रुख बदल गया।

कोहले के अनुसार, बाइडेन सरकार के दौरान ही कुछ ऐसे मुद्दे उठे — जैसे बांग्लादेश का राजनीतिक संकट, खालिस्तानी आतंकी पन्नून का मामला और अदानी समूह से जुड़ी चिंताएं — जिनमें अमेरिका ने भारत के हितों के खिलाफ रुख अपनाया। इससे दिल्ली में यह धारणा बनी कि यह सब बाइडेन प्रशासन द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को घेरने की एक रणनीति है।

डोनाल्ड ट्रंप ने बदली नहीं दिशा, बस रफ्तार दोगुनी कर दी

दिलचस्प बात यह है कि कई भारतीय रणनीतिकार यह मानते रहे कि जैसे ही ट्रंप दोबारा राष्ट्रपति बनेंगे, भारत-अमेरिका रिश्तों में आई ठंडक दूर हो जाएगी। लेकिन हुआ इसके उलट। ट्रंप प्रशासन ने न सिर्फ बाइडेन की नीति को जारी रखा, बल्कि उसे अधिक आक्रामक तरीके से आगे बढ़ाया।

अमेरिका ने अब पाकिस्तान और बांग्लादेश में अपनी मौजूदगी बढ़ा दी है। म्यांमार पर लगे प्रतिबंध हटाए गए हैं, और तुर्की के रास्ते अमेरिका की एंट्री अब मालदीव और श्रीलंका तक हो चुकी है। यह पूरा नेटवर्क दक्षिण एशिया में अमेरिका की नई रणनीतिक पकड़ का हिस्सा बनता दिख रहा है।

क्या भारत को तीसरे खेमे की कीमत चुकानी पड़ेगी?

रस्ट कोहले ने आगे चेतावनी दी कि अगर भारत खुद को अमेरिका और चीन के बीच "तीसरे ध्रुव" के तौर पर पेश करने की कोशिश करता रहा, तो इसका असर उसके आस-पास के रिश्तों पर भी पड़ेगा। उन्होंने कहा कि वॉशिंगटन की मौजूदा राय यह बन चुकी है कि अगर भारत पूरी तरह अमेरिका के साथ नहीं आता, तो फिर उसे अपने विकास में अमेरिकी समर्थन की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए।

उनका कहना है कि अमेरिका अब भारत की जगह बांग्लादेश और अन्य पड़ोसी देशों को रणनीतिक रूप से आगे बढ़ाने की कोशिश करेगा, ताकि भारत की क्षेत्रीय स्थिति को संतुलित किया जा सके।

रूस से उम्मीदें बेमानी?

अक्सर यह मान लिया जाता है कि अगर भारत को अमेरिका से दूरी बनानी है, तो वह रूस पर निर्भर हो सकता है। लेकिन कोहले इस सोच को व्यावहारिक नहीं मानते। उन्होंने साफ कहा कि रूस आज की तारीख में इतनी ताकतवर स्थिति में नहीं है कि वह भारत की भू-राजनीतिक चुनौतियों में प्रभावी मदद कर सके। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि रूस न तो अपने करीबी आर्मेनिया को अज़रबैजान से, और न ही ईरान को इज़राइल से बचा सका।

आगे क्या?

भारत को अब एक नई रणनीति की ज़रूरत है। वो रणनीति जो उसे न केवल अमेरिका की बदलती सोच से निपटने में मदद करे, बल्कि क्षेत्रीय ताकतों के साथ भी संतुलन बनाए रखे। अगर दिल्ली ने समय रहते सही संतुलन नहीं साधा, तो आने वाले वर्षों में दक्षिण एशिया की भू-राजनीति में उसका वर्चस्व कमजोर पड़ सकता है।

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