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Up Kiran, Digital Desk: शहर के प्रतिष्ठित और ऐतिहासिक बॉयज हाई स्कूल जिसकी दीवारों से होकर शिक्षा की रोशनी ने कभी सदी के महानायक अमिताभ बच्चन का भी रास्ता रोशन किया था आज खुद एक अंधेरे भंवर में घिरता दिख रहा है। स्कूल के कार्यवाहक प्रिंसिपल डेविड लुक के विरुद्ध फर्जी डिग्री मामले में सिविल लाइंस थाने में एफआईआर दर्ज की गई है।

यह कोई मामूली मामला नहीं बल्कि उन नींवों को हिला देने वाला है जिन पर एक शैक्षिक संस्था की गरिमा और ईमानदारी टिकी होती है। आरोप लगाने वाले हैं मरिस एडगर दान बिशप डायसिस ऑफ लखनऊ चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया से जुड़े एक वरिष्ठ पदाधिकारी जिन्होंने एफआईआर में डेविड लुक उनके बड़े बेटे और एक अज्ञात सहयोगी को धोखाधड़ी कूट रचना और आपराधिक साजिश जैसे गंभीर आरोपों के तहत नामजद किया है।

जब अतीत की परतें खुलने लगीं...

एफआईआर के अनुसार साल 2010 में डेविड लुक को कार्यवाहक प्रिंसिपल के पद पर नियुक्त किया गया था—एक ऐसा पद जो बच्चों के भविष्य को आकार देने का काम करता है। दो साल बाद 2012 में जब स्कूल ने स्थायी प्रिंसिपल के लिए आवेदन आमंत्रित किए तो लुक ने भी अपने दस्तावेज़ प्रस्तुत किए। इनमें एक ऐसी एमए की डिग्री थी जिसने अब इस पूरे मामले को जन्म दिया है।

लुक ने दावा किया था कि उन्होंने 2007 में छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर से अंग्रेज़ी में प्रथम श्रेणी में एमए किया है। लेकिन शिकायतकर्ता का आरोप है कि यह डिग्री फर्जी है और इसे न सिर्फ जालसाजी से तैयार किया गया बल्कि साक्षात्कार समिति के समक्ष इसे ईमानदारी की चादर ओढ़ाकर प्रस्तुत भी किया गया।

सेल्फ-अटेस्टेड सच और झूठ की कशमकश

शिकायतकर्ता के पास डेविड लुक के हस्ताक्षरयुक्त सेल्फ अटेस्टेड प्रमाणपत्रों की मूल प्रतियां मौजूद हैं—जैसे सच को छिपाने की हर कोशिश के बीच एक मौन गवाह। उन्होंने फॉरेंसिक जांच की मांग की है और सभी दस्तावेज़ सीलबंद लिफाफे में जांच अधिकारी को सौंपने की तैयारी कर ली है।

एफआईआर में कहा गया है कि डेविड लुक लगातार यह दावा कर रहे हैं कि वह मार्कशीट उनकी नहीं है जबकि साक्षात्कार के दौरान उन्होंने इसी मार्कशीट को प्रस्तुत किया था। ये विरोधाभास अब एक सच्चाई और छलावे की लड़ाई में बदल चुका है।

बीएड की गुत्थी: हाज़िरी और हेराफेरी का टकराव

इतना ही नहीं लुक पर एक और गंभीर आरोप यह है कि उन्होंने बीएड की डिग्री में भी फर्जीवाड़ा किया। उन्होंने खुद को उस सत्र में संस्थागत परीक्षार्थी बताया लेकिन उनके रिकॉर्ड बताते हैं कि वे हर दिन स्कूल में हाज़िर थे वेतन ले रहे थे और नियमित रूप से काम कर रहे थे। ऐसे में एक शिक्षक द्वारा नियमों की बुनियादी समझ को ताक पर रखकर दोहरी भूमिका निभाना शिक्षा व्यवस्था के साथ विश्वासघात से कम नहीं।

इंटरव्यू कमेटी: गवाह बनते जा रहे हैं दस्तावेज़

2012 में हुए इंटरव्यू के दौरान एक पाँच सदस्यीय चयन समिति ने सभी आवेदकों की शैक्षणिक प्रोफाइल तैयार की थी। उस समय समिति के सभी सदस्य—मरिस एडगर दान डॉ. मार्विन मैंसी डॉ. एस डी चंद आर.के. चत्री और एच.आर. मल—ने डेविड लुक द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज़ों पर अपने हस्ताक्षर किए थे। आज वे सब गवाही देने और हलफनामा प्रस्तुत करने को तैयार हैं कि डेविड ने वही मार्कशीट प्रस्तुत की थी जिसे वे अब नकार रहे हैं।

अनुभव का झूठा ताज

एफआईआर में एक और आरोप यह भी है कि डेविड लुक ने अनुभव प्रमाण पत्र में झूठी जानकारी दी थी। उन्होंने 11वीं और 12वीं कक्षा को पढ़ाने का 10 साल का अनुभव होने का दावा किया था। अगर यह दावा सही माना जाए तो उन्हें 2002 में ही एमए पास कर लेना चाहिए था। लेकिन उन्होंने 2007 की डिग्री दिखाई जिससे उनके अनुभव और शैक्षणिक योग्यता के बीच एक गहरी खाई उजागर होती है।

परछाइयों में शामिल चेहरों की तलाश

डेविड लुक अकेले नहीं हैं इस जालसाजी की परतों में। उनके बड़े बेटे और एक अज्ञात दोस्त को भी एफआईआर में सह-अभियुक्त बनाया गया है। आरोप है कि फर्जी दस्तावेज़ों की तैयारी में इन दोनों की प्रत्यक्ष भूमिका रही है। यह अब केवल एक व्यक्ति का नहीं बल्कि साजिश की एक पूरी श्रृंखला का मामला बन चुका है।

प्रिंसिपल की कुर्सी अब सवालों के घेरे में

जहाँ एक ओर डेविड लुक लगातार यह कहते आ रहे हैं कि वह निर्दोष हैं वहीं दूसरी ओर वे अब तक अपनी वैध डिग्री का एक भी प्रमाण सार्वजनिक रूप से नहीं दे सके हैं। शिकायतकर्ता ने उन्हें खुले शब्दों में “जालसाज” करार दिया है और इस पूरे घटनाक्रम को न सिर्फ एक शैक्षणिक संस्थान के साथ बल्कि समाज के विश्वास के साथ भी धोखा बताया है।

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