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Up Kiran, Digital Desk: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है, जिसमें उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) से विस्थापित होकर उत्तर प्रदेश में दशकों से बस चुके परिवारों को कानूनी भूमि स्वामित्व देने का निर्देश दिया है। सोमवार को हुई एक उच्च स्तरीय बैठक में, मुख्यमंत्री ने इसे केवल भूमि के हस्तांतरण तक सीमित न रखने की बात की, बल्कि इसे एक नैतिक और राष्ट्रीय दायित्व के रूप में भी देखा। यह कदम इन परिवारों की पीढ़ियों से चली आ रही समस्याओं के समाधान की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है।

दशकों पुराना संघर्ष, अब मिलेगा न्याय

योगी आदित्यनाथ के निर्देशों के अनुसार, 1960 और 1975 के बीच पूर्वी पाकिस्तान से विस्थापित हुए हज़ारों परिवारों को अब तक कानूनी अधिकार नहीं मिल पाए थे। इन परिवारों को ट्रांजिट कैंपों में शरण दी गई थी और बाद में उन्हें कृषि भूमि आवंटित की गई थी। लेकिन, कानूनी अड़चनों, कागजी कार्रवाई की खामियों और प्रशासनिक समस्याओं की वजह से ये परिवार आज भी भूमि के अधिकार से वंचित थे।

भूमि से जुड़ी कानूनी समस्याएं

इन विस्थापित परिवारों को दी गई ज़मीन अभी भी कई मामलों में वन विभाग के रिकॉर्ड में है या फिर उनकी दाखिल-खारिज की प्रक्रिया लंबित है। कुछ भूखंडों पर कब्ज़ा तो किया गया है, लेकिन बिना कानूनी मंज़ूरी के, जिससे इन्हें कानूनी अधिकार मिलने में और भी मुश्किलें पैदा हो रही हैं। इसके अलावा, अन्य राज्यों से आए परिवारों को भी अभी तक जमीन का अधिकार नहीं मिल पाया है, और वे असमर्थता का सामना कर रहे हैं।

नए कानूनी उपायों की तलाश

2018 में सरकारी अनुदान अधिनियम को रद्द करने के बाद, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों को इन परिवारों को कानूनी अधिकार देने के लिए नए कानूनी विकल्प खोजने का निर्देश दिया है। जिलाधिकारियों को भी यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि इन परिवारों का नाम राजस्व अभिलेखों में समयबद्ध तरीके से दर्ज किया जाए, और जहां ज़मीन उपलब्ध नहीं है, वहां पुनर्वास के लिए वैकल्पिक भूमि प्रदान की जाए।


 

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