Up Kiran, Digital Desk: भारत में हम देवी-देवताओं और महापुरुषों को पूजते हैं, यह आम बात है। लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि किसी अंग्रेज अफसर को एक भारतीय भाषा के लिए 'भगवान' का दर्जा दिया गया हो? जी हां, यह बिल्कुल सच है। उनका नाम है चार्ल्स फिलिप ब्राउन, जिन्हें प्यार से सी.पी. ब्राउन कहा जाता है।
आज योगी वेमना विश्वविद्यालय में सी.पी. ब्राउन की 235वीं जयंती बड़े सम्मान के साथ मनाई गई। इस मौके पर विश्वविद्यालय के बड़े-बड़े अधिकारियों ने उन्हें याद किया और बताया कि कैसे एक अंग्रेज ने तेलुगु भाषा को बचाने और उसे दुनिया तक पहुंचाने के लिए अपनी पूरी जिंदगी लगा दी।
कौन थे सी.पी. ब्राउन?
सी.पी. ब्राउन ईस्ट इंडिया कंपनी में एक सिविल सर्वेंट बनकर भारत आए थे। लेकिन यहां आकर उन्हें तेलुगु भाषा से ऐसा लगाव हुआ कि वह सिर्फ एक अफसर नहीं रहे, बल्कि तेलुगु के सबसे बड़े सेवक बन गए। उस समय तेलुगु साहित्य और भाषा धीरे-धीरे अपनी पहचान खो रहे थे। बहुत सी पुरानी किताबें और कविताएं गायब हो रही थीं। ऐसे में ब्राउन ने एक मिशन की तरह काम शुरू किया।
उन्होंने तेलुगु भाषा के लिए क्या किया?
बनाई पहली डिक्शनरी: उन्होंने सालों की मेहनत के बाद पहली विस्तृत तेलुगु-इंग्लिश डिक्शनरी तैयार की। आज भी तेलुगु सीखने वाला हर छात्र उनकी डिक्शनरी को सबसे भरोसेमंद मानता है।
बचाईं पुरानी पांडुलिपियां: उन्होंने गांव-गांव घूमकर, पुराने पंडितों से मिलकर तेलुगु की हजारों साल पुरानी कविताओं (पद्यलु) और पांडुलिपियों को इकट्ठा किया। अगर वो न होते, तो शायद तेलुगु साहित्य का एक बहुत बड़ा खजाना हमेशा के लिए खो जाता।
भाषा को बनाया आसान: उन्होंने तेलुगु व्याकरण और लेखन शैली को आसान बनाने पर भी काम किया ताकि आम लोग भी इसे आसानी से पढ़ और लिख सकें।
विश्वविद्यालय के वाइस-चांसलर प्रोफेसर पी.आर. वेंकटरमण ने उन्हें याद करते हुए एक बहुत खूबसूरत बात कही। उन्होंने कहा, "जैसे मदर टेरेसा विदेश से आकर यहां के लोगों की सेवा में बस गईं, वैसे ही सी.पी. ब्राउन ने एक विदेशी होते हुए भी तेलुगु भाषा की जो सेवा की है, उसे कभी नहीं भुलाया जा सकता। यही वजह है कि तेलुगु भाषी लोग उन्हें किसी देवता से कम नहीं मानते।"
यह कहानी हमें सिखाती है कि सेवा और समर्पण की कोई सरहद या राष्ट्रीयता नहीं होती। सी.पी. ब्राउन एक अंग्रेज थे, लेकिन उनका दिल तेलुगु के लिए धड़कता था। इसीलिए, आज भी सदियां बीत जाने के बाद भी तेलुगु भाषा का हर छात्र और विद्वान उनका नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लेता है।
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