
Up Kiran, Digital Desk: भारत के प्रतिष्ठित शोध संस्थानों में से एक, विकासशील समाजों के अध्ययन केंद्र (CSDS) पर भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) ने कड़ा प्रहार किया है। ICSSR ने CSDS को कारण बताओ नोटिस जारी कर, चुनाव आयोग (ECI) के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अभ्यास और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों पर किए गए अध्ययनों के लिए वित्तपोषण स्रोत (source of funding) का खुलासा करने का आदेश दिया है। इससे भी गंभीर बात यह है कि ICSSR ने CSDS पर "जानबूझकर डेटा में हेरफेर" (deliberately engaging in data manipulation) करने और "संवैधानिक प्राधिकरण जैसे भारत निर्वाचन आयोग की पवित्रता को कम करने के इरादे से एक कथा बनाने के दुर्भावनापूर्ण कार्य" का आरोप लगाया है। यह घटनाक्रम देश के चुनावी विश्लेषण की सत्यता और शोध संस्थानों की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
CSDS के शोधकर्ता पर FIR, माफी का ड्रामा: क्या है पूरा मामला?
नागपुर और नासिक पुलिस द्वारा CSDS के एक प्रमुख सदस्य और चुनावविज्ञानी (psephologist) संजय कुमार के खिलाफ दर्ज की गई प्राथमिकी (FIRs) के साथ मेल खाती है। संजय कुमार पर वोटर डिक्लाइन (voter decline) के झूठे दावे फैलाने का आरोप है। रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने रामटेक में 38.45% और देवलाली में 36.82% की भारी मतदाता गिरावट का दावा किया था, जिसे बाद में हटा दिया गया।
यह घटनाक्रम ऐसे समय में आया है जब संजय कुमार ने स्वयं महाराष्ट्र चुनावों पर अपने एक एक्स (पूर्व में ट्विटर) पोस्ट के लिए माफी (apology) मांगी थी। उन्होंने कहा कि यह त्रुटि उनके डेटा टीम द्वारा डेटा को गलत पढ़ने (misreading of a row) के कारण हुई थी। कुमार ने अपने ट्वीट को हटा दिया और कहा कि उनका किसी भी प्रकार की गलत सूचना (misinformation) फैलाने का कोई इरादा नहीं था। संजय कुमार, CSDS दिल्ली में एक वरिष्ठ शोधकर्ता हैं, और यह संस्थान चुनावों के विश्लेषण (analysis) के लिए अपनी गहरी पकड़ के लिए जाना जाता है।
ICSSR के आरोप: चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सीधा हमला!
ICSSR का यह कड़ा रुख CSDS द्वारा चुनावों के अध्ययन (study of elections) के दौरान डेटा को गलत तरीके से प्रस्तुत करने के आरोपों को रेखांकित करता है। ICSSR के अनुसार, CSDS ने जानबूझकर ऐसा एंटी-ईसीआई नैरेटिव (anti-ECI narrative) बनाने का प्रयास किया, जिसका सीधा असर भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India) जैसी संवैधानिक संस्था (constitutional authority) की गरिमा (sanctity) पर पड़ा। ये आरोप चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता (credibility) और निष्पक्षता (fairness) पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाते हैं।
'मेक इन इंडिया' या 'डेटा में हेरफेर'? शोध की नैतिकता पर बहस!
यह घटनाक्रम देश में शोध नैतिकता (research ethics) और डेटा की अखंडता (data integrity) पर एक बड़ी बहस को जन्म दे सकता है। जहां एक ओर भारत 'मेक इन इंडिया' (Make in India) और 'आत्मनिर्भर भारत' (Atmanirbhar Bharat) के माध्यम से अपनी क्षमताओं को बढ़ा रहा है, वहीं दूसरी ओर इस तरह के आरोप संस्थानों की प्रतिष्ठा (reputation) पर सवाल उठाते हैं। CSDS जैसे प्रतिष्ठित संस्थान, जो चुनाव विश्लेषण (electoral analysis) के लिए जाने जाते हैं, का इस तरह के आरोपों में फंसना चिंताजनक है।
क्या है अगला कदम? जनता का विश्वास और चुनावी पारदर्शिता!
ICSSR द्वारा उठाए गए ये कदम यह सुनिश्चित करने की दिशा में एक प्रयास हो सकते हैं कि चुनाव प्रक्रिया (election process) की अखंडता बनी रहे और लोकतंत्र (democracy) की नींव मजबूत रहे। क्या CSDS इन आरोपों का संतोषजनक जवाब दे पाएगा, और क्या उसके वित्तपोषण स्रोतों का खुलासा इस मामले में कोई नई रोशनी डालेगा, यह देखना महत्वपूर्ण होगा। फिलहाल, यह मामला भारतीय राजनीति (Indian politics) और चुनावों की पारदर्शिता (transparency in elections) पर गहन विचार-विमर्श की मांग करता है।
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