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आर्मेनिया और अजरबैजान दो पड़ोसी देश ऐतिहासिक रूप से एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन रहे हैं। ये दोंनों एक बार फिर युद्ध के कगार पर खड़े हैं। हाल ही में शांति समझौते का मसौदा तैयार होने के बावजूद दोनों देशों के बीच हस्ताक्षर नहीं हो सके और सीमा पर सैन्य निर्माण व युद्धविराम उल्लंघन के आरोपों ने तनाव को खतरनाक स्तर पर पहुंचा दिया है।

आर्मेनिया-ईरान सैन्य गठजोड़

आर्मेनिया ने हाल ही में ईरान के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास "शांति" आयोजित किया, जिसमें अर्मेनियाई स्पेशल फोर्सेज और ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स (IRGC) शामिल थे। ये अभ्यास अजरबैजान के नखचिवन एक्सक्लेव के निकट संवेदनशील सीमा क्षेत्र में हुआ। ईरान ने इसे सहयोग और संप्रभुता की रक्षा का कदम बताया, मगर इसे अजरबैजान को चेतावनी के रूप में भी देखा जा रहा है। ईरान का रूस के साथ जमीनी संपर्क और तुर्की के साथ तनाव इस गठजोड़ की रणनीतिक अहमियत को दर्शाता है।

ईरान का समर्थन, हथियार सौदा

ईरान ने आर्मेनिया के समर्थन में क्षेत्रीय सीमाओं में बदलाव का विरोध किया है। जुलाई 2024 में दोनों देशों ने 500 मिलियन डॉलर के हथियार सौदे पर हस्ताक्षर किए, जिसमें ड्रोन और एयर डिफेंस सिस्टम शामिल हैं। ईरान का यह कदम अजरबैजान और उसके सहयोगी तुर्की के लिए एक मजबूत संदेश है।

आर्मेनिया का रूस-अमेरिका से मोहभंग

सन् 2020 के युद्ध में रूस की ओर से मदद न मिलने और अमेरिका की सुरक्षा गारंटियों से निराशा के बाद आर्मेनिया ने ईरान की ओर रुख किया। रूस के नेतृत्व वाले CSTO और पश्चिमी देशों से दूरी ने आर्मेनिया को क्षेत्रीय सहयोगी के रूप में ईरान के करीब ला दिया।

भारत-आर्मेनिया रक्षा संबंध

आर्मेनिया भारत से हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार बनकर उभरा है। 2022 में 720 मिलियन डॉलर के आकाश मिसाइल सौदे से शुरू हुआ यह सहयोग अब पिनाका रॉकेट सिस्टम, होवित्जर, और एंटी-टैंक हथियारों तक विस्तारित हो चुका है। 2023 में आर्मेनिया ने भारत में रक्षा अताशे नियुक्त कर द्विपक्षीय सैन्य सहयोग को और मजबूत किया। अब युद्ध हुआ तो इसमें भारतीय हथियार अहम भूमिका निभाएंगे।

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