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Up Kiran, Digital Desk: क्या आपने ध्यान दिया है कि हमारा प्यारा और पुराना रंगमंच, यानी नाटक और थिएटर वगैरह आजकल शायद उतने देखने को नहीं मिलते जितने पहले मिलते थे? खासकर छोटे शहरों या गांवों में... यह सोचकर थोड़ा दुख होता है, है ना? क्योंकि ये तो हमारी संस्कृति का एक बहुत ही खास और ज़िंदा हिस्सा रहे हैं।

इसी बारे में आंध्र यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर और खुद रंगमंच से गहराई से जुड़ीं डॉ. पी. अनुराधा ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही है। उनका कहना है कि अगर हमें रंगमंच की इन बेहतरीन और पुरानी परम्पराओं को फिर से ज़िंदा करना है, उन्हें खोने से बचाना है, तो एक चीज़ है जो इसमें सबसे अहम भूमिका निभा सकती है - और वो हैं 

डॉ. अनुराधा के मुताबिक, सिर्फ कलाकार या सरकार के प्रयास काफी नहीं हैं। ज़रूरत इस बात की है कि हम दर्शक भी सक्रिय हों। जब दर्शक क्लब बनते हैं, तो क्या होता है?

आजकल मोबाइल, इंटरनेट और टीवी के ज़माने में लोग शायद आसानी से थिएटर तक नहीं पहुँच पाते। ऐसे में दर्शक क्लब लोगों को फिर से इस खूबसूरत कला रूप से जोड़ सकते हैं। वे जानकारी फैला सकते हैं, टिकट खरीदने में मदद कर सकते हैं, या सामूहिक रूप से नाटकों का आयोजन करवा सकते हैं।

डॉ. अनुराधा की बात बिल्कुल सही लगती है। रंगमंच सिर्फ स्टेज पर होने वाली चीज़ नहीं है, यह दर्शकों के बिना अधूरा है। अगर हम सब मिलकर, दर्शक के तौर पर आगे आएं, क्लब बनाएं और नाटकों को अपना सपोर्ट दें, तो हमारी रंगमंच परम्पराएं सचमुच फिर से अपनी पूरी चमक और ज़िंदगी के साथ खड़ी हो सकती हैं। यह हम दर्शकों के हाथ में है कि हम अपनी इस अनमोल विरासत को कैसे संजोते हैं और उसे आगे बढ़ाते हैं

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