दुनिया की दो सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्तियां, अमेरिका और चीन, अपने कड़वे व्यापारिक रिश्तों को सुधारने के लिए एक बार फिर बातचीत की मेज पर बैठे हैं। लेकिन इस बार यह बैठक वाशिंगटन या बीजिंग में नहीं, बल्कि मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर में हो रही है, जो इस बातचीत को और भी अहम बना देती है।
दोनों देशों के बड़े व्यापारिक अधिकारी मलेशिया में मिल रहे हैं ताकि सालों से चल रहे 'ट्रेड वॉर' को खत्म करने का कोई रास्ता निकाला जा सके। लेकिन इस बातचीत में सबसे बड़ा कांटा बने हुए हैं पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चीन के सामानों पर लगाए गए भारी-भरकम टैरिफ (आयात शुल्क)।
ट्रंप के टैरिफ क्यों बने हैं सबसे बड़ा मुद्दा?
ट्रंप ने अपने कार्यकाल में चीन से आने वाले अरबों डॉलर के सामान पर टैक्स लगा दिया था। चीन चाहता है कि बाइडेन प्रशासन इन सभी टैरिफ को पूरी तरह से हटा दे। वहीं, अमेरिका का कहना है कि चीन व्यापार में गलत तरीकों का इस्तेमाल करता है, इसलिए ये टैरिफ जरूरी हैं। भले ही अमेरिका में सरकार बदल गई हो, लेकिन ट्रंप की यह नीति आज भी दोनों देशों के बीच तनाव का सबसे बड़ा कारण बनी हुई है।
मलेशिया में ही क्यों हो रही है यह बैठक?
मलेशिया को एक न्यूट्रल ग्राउंड के तौर पर देखा जा रहा है। इसके अलावा, मलेशिया खुद सेमीकंडक्टर जैसी जरूरी चीजों की ग्लोबल सप्लाई चेन का एक अहम हिस्सा है, और अमेरिका-चीन के व्यापार युद्ध का सीधा असर उस पर भी पड़ता है।
पूरी दुनिया की नजरें इस बैठक पर टिकी हुई हैं। अगर इन दोनों देशों के बीच व्यापारिक तनाव कम होता है, तो इससे पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था को फायदा होगा और महंगाई कम करने में भी मदद मिलेगी। लेकिन अगर यह बातचीत भी फेल हो जाती है, तो इसका असर हम तक पहुंचने वाले स्मार्टफोन से लेकर कारों तक, हर चीज पर पड़ सकता है।
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