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Up Kiran , Digital Desk: बीजेपी विधायक कंवरलाल मीणा का नाम इन दिनों राजनीतिक और कानूनी गलियारों में चर्चा का केंद्र बना हुआ है। 20 साल पुराने एक आपराधिक मामले में तीन साल की सजा मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट से भी राहत न मिलने पर उन्होंने आखिरकार बुधवार को ट्रायल कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया। अदालत ने उन्हें झालावाड़ की अकलेरा जेल भेजने के आदेश दिए हैं।

क्या है पूरा मामला

यह घटना 3 फरवरी, 2005 की है। झालावाड़ जिले के मनोहर थाना क्षेत्र में दांगीपुरा-राजगढ़ मोड़ पर उपसरपंच चुनाव के बाद पुनर्मतदान की मांग को लेकर ग्रामीणों ने रास्ता जाम कर रखा था। स्थिति को संभालने तत्कालीन एसडीएम रामनिवास मेहता, आईएएस प्रोबेशनर डॉक्टर प्रीतम बी. यशवंत और तहसीलदार मौके पर पहुंचे।

इसी दौरान कंवरलाल मीणा अपने समर्थकों के साथ पहुंचे और कथित रूप से एसडीएम की कनपटी पर पिस्टल तान दी। आरोप है कि उन्होंने दोबारा मतगणना की घोषणा न होने पर जान से मारने की धमकी भी दी। साथ ही, मौके पर मौजूद विभागीय फोटोग्राफर का कैमरा तोड़ने और जलाने, तथा आईएएस अधिकारी का डिजिटल कैमरा छीनने के आरोप भी उन पर लगे।

न्यायिक सफर: बरी से लेकर सजा तक

2018: ट्रायल कोर्ट ने कंवरलाल को दोषमुक्त कर दिया था।

2020: अपीलीय अदालत अकलेरा ने ट्रायल कोर्ट का फैसला पलटते हुए तीन साल की सजा सुनाई।

2025: हाईकोर्ट ने सजा बरकरार रखी।

7 मई 2025: सुप्रीम कोर्ट ने SLP खारिज कर दी और दो हफ्ते में सरेंडर का निर्देश दिया।

वकील की दलीलें और सुप्रीम कोर्ट की सख्ती

विधायक के वकील, नमित सक्सेना ने यह दलील दी कि मौके से कोई हथियार या वीडियो सबूत नहीं मिला और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप भी तथ्यहीन हैं। मगर सुप्रीम कोर्ट ने यह दलीलें खारिज कर दीं।

हाईकोर्ट ने भी स्पष्ट कहा था कि कंवरलाल की आपराधिक पृष्ठभूमि को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता – उनके खिलाफ 15 आपराधिक मामले दर्ज रह चुके हैं, भले ही अधिकतर में वे दोषमुक्त हुए हों।

 

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