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Up Kiran Digital Desk:   उत्तर प्रदेश की सियासत में इन दिनों एक नया 'PDA' चर्चा का विषय बना हुआ है। जी हां, वही 'PDA' जिसने लोकसभा चुनावों में बीजेपी को चौंका दिया था। मगर अब बीजेपी उसी 'PDA' को अपना हथियार बनाने की तैयारी में है। दरअसल, बीजेपी ने अगली जनगणना में जातिगत गणना का वादा करके एक बड़ा दांव खेला है। इसके साथ ही, पार्टी विपक्ष के 'पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक' (PDA) के जवाब में अपना 'पिछड़ा, दलित, अगड़ा' (PDA) का नया संस्करण पेश करने की रणनीति पर काम कर रही है।

लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी के 'PDA' फॉर्मूले ने बीजेपी को यूपी में खासा नुकसान पहुंचाया था, ऐसा राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है। अब बीजेपी उसी नुकसान की भरपाई और विपक्ष की चाल को मात देने के लिए हिंदू समुदाय के भीतर जातिगत एकता का संदेश देने की रणनीति पर काम कर रही है। पार्टी ओबीसी, एससी और उच्च जाति के लोगों को एक साथ लाकर एक मजबूत सामाजिक समीकरण बनाने की कोशिश कर रही है।

अंबेडकर जयंती से शुरुआत, एकता का संदेश

बीजेपी ने इस रणनीति की शुरुआत दलित नेता बीआर अंबेडकर की जयंती से की थी। तब पार्टी ने अपने उच्च जाति के पदाधिकारियों से दलित बहुल इलाकों में अंबेडकर की मूर्तियों की सफाई में दलितों के साथ मिलकर काम करने को कहा था। इसके बाद, राज्य महासचिव (संगठन) धर्मपाल सिंह ने एससी समुदाय के सदस्यों का एक सम्मेलन आयोजित किया, जिसमें प्रमुख उच्च जाति के पदाधिकारियों को भी आमंत्रित किया गया।

यूपी बीजेपी एससी मोर्चा के प्रमुख राम चंद्र कन्नौजिया का कहना है कि दलित समुदाय एक भ्रमित समूह है, जो आसानी से राजनीतिक दलों के बहकावे में आ जाता है। उन्होंने कहा कि दलितों को उच्च जाति के साथ लाने से न केवल उनका हौसला बढ़ेगा, बल्कि जाति-विभाजित हिंदू समुदाय के भीतर एकता का संदेश भी जाएगा। उनका मानना है कि दलितों के बीच व्याप्त उच्च जाति विरोधी धारणा को खत्म करना जरूरी है, ताकि एक एकजुट समाज का निर्माण हो सके।

विशेषज्ञों की राय: चुनावी रणनीति में बदलाव

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि बीजेपी का 'PDA' को फिर से परिभाषित करने का प्रयास जाति आधारित चुनावी राजनीति में एक बड़ा रणनीतिक बदलाव है। खासकर, यूपी में इसका असर देखने को मिलेगा। उनका कहना है कि अपने 'PDA' के निर्माण के माध्यम से बीजेपी विपक्ष के आक्रामक कथानक को बेअसर कर सकती है, जिसका उद्देश्य ओबीसी, दलित और अल्पसंख्यकों को एकजुट करना है।

बीजेपी का यह 'PDA' मास्टरस्ट्रोक कितना कारगर साबित होगा, यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा। मगर इतना तो तय है कि यूपी की राजनीति में एक नया दिलचस्प मोड़ आ गया है। अब देखना यह है कि बीजेपी इस नए 'PDA' फॉर्मूले से विपक्ष की चाल को कैसे मात देती है और अपनी राजनीतिक जमीन को कैसे मजबूत करती है।

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