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लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबसूरती उसकी पारदर्शिता और जवाबदेही है, मगर जब सवाल उठते हैं तो वह सिर्फ आंतरिक मसला नहीं रह जाता। खासकर तब, जब सवाल विदेशी धरती से उठाए जाएं। राहुल गांधी का बोस्टन यूनिवर्सिटी में दिया गया बयान भारत के भीतर और बाहर दोनों जगहों पर बहस का मुद्दा बन गया है।

क्या था राहुल गांधी का तर्क

राहुल गांधी ने कहा कि भारत के सिस्टम में कुछ बुनियादी खामियां हैं। उन्होंने विशेष तौर पर महाराष्ट्र चुनाव का उदाहरण देते हुए कहा कि दो घंटे के भीतर 65 लाख वोटर्स का जुड़ना 'लगभग असंभव' था। उनका यह बयान सीधे-सीधे चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल था।

भाजपा की प्रतिक्रिया क्यों इतनी तीखी रही?

भाजपा ने इस बयान को राष्ट्रीय सम्मान और लोकतांत्रिक संस्थाओं पर हमला बताया। उनके प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने इसे 'भारत की छवि बिगाड़ने की सुपारी' कह दिया। भाजपा का कहना है कि राहुल गांधी भारत में जनता का भरोसा नहीं जीत पा रहे, इसलिए विदेशी छात्रों के सामने लोकतंत्र को कमजोर दिखा रहे हैं।

राष्ट्रविरोधी करार देने सही नहीं

लोकतंत्र की बुनियाद ही आलोचना पर टिकी है। अगर कोई नेता चुनाव प्रक्रिया को लेकर सवाल उठाता है, तो उसका जवाब तथ्यों से दिया जाना चाहिए न कि उसे राष्ट्रविरोधी करार देकर। मगर साथ ही यह भी अहम है कि जब ये सवाल किसी विदेशी मंच से उठते हैं, तो वह देश की वैश्विक छवि को प्रभावित करते हैं। आलोचना और बदनामी के बीच की रेखा बेहद बारीक होती है।