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BJP District President: उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों सियासी धर पकड़ और सोशल इंजीनियरिंग का दौर जारी है और इस बीच बीजेपी ने हाल ही में 69 जिला अध्यक्षों की नई लिस्ट जारी की है। भगवा पार्टी की इस सूची के जरिए पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं के बीच एक मजबूत संदेश देने की कोशिश की है, लेकिन राजनीतिक पंडितों का मानना है कि इसका फायदा मुख्य रूप से समाजवादी पार्टी (सपा) को मिल सकता है।

भा.ज.पा. के इस कदम को लेकर सियासी पंडितों की राय है कि BJP ने ये लिस्ट सवर्णों को ध्यान में रखकर बनाई है। इस सूची में कुल 70 जिलाध्यक्षों में से 55.71 प्रतिशत सवर्णों को जगह दी गई है। साथ ही 25 ओबीसी (अर्थात पिछड़े वर्ग) और 6 दलितों को भी स्थान दिया गया है। BJP का मकसद ये तय करना है कि सवर्णों का वोट बैंक पूरी तरह से पार्टी के पक्ष में बना रहे, ताकि आगामी चुनावों में अन्य दल इस 15 प्रतिशत वोट बैंक में सेंध न लगा सकें।

विशेषत्रों के मुताबिक, बीजेपी अपनी स्वर्ण वोट बैंक को किसी भी कीमत पर नाराज नहीं करना चाहती। ये रणनीति आगामी पंचायत चुनाव 2026 और विधानसभा चुनाव 2027 के मद्देनजर बनाई गई है। हालांकि, 28 जिलों में जिलाध्यक्षों का चयन अभी तक गुटबाजी और खींचतान के कारण बाकी है, और इस पर भविष्य में किसी भी क्षण फैसला हो सकता है। इन 28 जिलाध्यक्षों की लिस्ट का आना भी BJP की रणनीति पर भारी असर डाल सकता है।

विपक्ष के निशाने पर भगवा पार्टी

इस नई सूची में भगवा दल ने कुछ महत्वपूर्ण संकेत दिए हैं, जो समाजवादी पार्टी (सपा) के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने हमेशा जनसंख्या के हिसाब से सभी जातियों और समुदायों के लिए समान भागीदारी की वकालत की है, जिसे वह PDA (Population Distribution Formula) के रूप में प्रस्तुत करते रहे हैं। कांग्रेस भी अक्सर ओबीसी, एससी, एसटी की भागीदारी पर सवाल उठाती रही है।

इस नई फेहरिस्त में ओबीसी और दलितों की संख्या अपेक्षाकृत कम है, जिसके चलते सपा और कांग्रेस योगी की पार्टी पर आरोप लगा सकती है कि उन्होंने इन वर्गों के साथ न्याय नहीं किया। यदि सपा और कांग्रेस BJP के विरुद्ध PDA का मुद्दा उठाती हैं, तो यह मतदाताओं के बीच एक बड़ा मुद्दा बन सकता है और BJP के लिए परेशानियों का सबब बन सकता है।

आखिरकार योगी आदित्यनाथ की कुर्सी पर संकट?

सपा और अन्य विपक्षी दलों के लिए यह एक बड़ा मुद्दा हो सकता है। यदि यादव, मुस्लिम और अन्य ओबीसी व दलित जातियां इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाती हैं और एकजुट होकर चुनावी गठबंधन बनाती हैं, तो BJP को राज्य में अपनी सत्ता बनाए रखने में मुश्किल हो सकती है। जैसा कि पिछले लोकसभा चुनाव में विपक्ष ने ओबीसी, एससी, एसटी और मुस्लिमों के अधिकारों की बात उठाते हुए BJP के विरुद्ध माहौल तैयार किया था, उसी तरह इस बार भी ये मुद्दा BJP के लिए चुनौती बन सकता है।

अगर सपा और कांग्रेस इस मुद्दे को चुनावों में प्रमुख बनाती हैं, तो ये सीएम योगी की कुर्सी के लिए खतरे का संकेत हो सकता है। उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस के गठबंधन का मामला भगवा पार्टी के लिए चिंताजनक साबित हो सकता है।