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Up Kiran, Digital Desk: नई दिल्ली की सियासत इन दिनों गर्म है, और वजह है उपराष्ट्रपति चुनाव की उलटी गिनती। जैसे-जैसे नामांकन की अंतिम तारीख नजदीक आ रही है, भारतीय जनता पार्टी के भीतर संभावित उम्मीदवारों को लेकर चर्चाएं तेज़ हो गई हैं। संसदीय गणित की बात करें तो इस बार सत्ता पक्ष यानी एनडीए की स्थिति बेहद मजबूत है, क्योंकि लोकसभा और राज्यसभा दोनों में उसके पास पर्याप्त समर्थन मौजूद है।
खास बात यह भी है कि राज्यसभा में एनडीए को न सिर्फ बहुमत हासिल है, बल्कि मनोनीत सदस्यों में से भी कई लोग औपचारिक रूप से बीजेपी का हिस्सा बन चुके हैं। ऐसे में यह चुनाव केवल एक औपचारिकता जैसा माना जा रहा है। बीजेपी के सहयोगी दलों ने उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार तय करने की जिम्मेदारी सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा पर छोड़ दी है। साफ है कि आखिरी फैसला प्रधानमंत्री के हाथ में है, और वही नाम तय करेंगे जो इस पद के लिए आगे बढ़ेगा।
क्या शेषाद्रि चारी बन सकते हैं नया चेहरा?
नामांकन की अंतिम तिथि 21 अगस्त तय की गई है, जबकि मतदान और परिणाम 9 सितंबर को संभावित हैं। इन तारीखों के करीब आते ही पार्टी के भीतर कई नामों की चर्चा ज़ोर पकड़ने लगी है। एक वरिष्ठ बीजेपी पदाधिकारी ने, नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर, यह संकेत दिया कि हो सकता है प्रधानमंत्री मोदी एक बार फिर चौंकाने वाला फैसला लें।
उन्होंने कहा, “बीजेपी में कई बार ऐसे चेहरे उभर कर आते हैं जिनकी किसी ने कल्पना तक नहीं की होती... पार्टी की यही तो खासियत है।” जब उनसे किसी संभावित नाम का ज़िक्र करने को कहा गया, तो उन्होंने धीमे से कहा — “शेषाद्रि चारी एक गंभीर दावेदार हो सकते हैं।”
शेषाद्रि चारी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि से आते हैं और लंबे समय तक पार्टी संगठन से जुड़े रहे हैं। वे आरएसएस के अंग्रेज़ी मुखपत्र ‘ऑर्गेनाइज़र’ के संपादक रह चुके हैं और फिलहाल बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में एक सक्रिय सदस्य हैं। साथ ही, उन्होंने कार्यालय मंत्री के तौर पर भी ज़िम्मेदारी निभाई है। अगर उनका नाम तय होता है, तो इससे पार्टी अध्यक्ष की नियुक्ति में शीर्ष नेतृत्व को अधिक लचीलापन मिल सकता है।
एक और नाम चर्चा में: आचार्य देवव्रत
दूसरा प्रमुख नाम जो इस दौड़ में उभर कर आ रहा है, वह है गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत का। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जातीय संतुलन को देखते हुए बीजेपी इस नाम को प्राथमिकता दे सकती है। देवव्रत हरियाणा के समालखा से ताल्लुक रखते हैं और जाट समुदाय से आते हैं — वही जातीय समूह जिससे पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भी संबंध रखते थे। इसके अलावा, वे हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल भी रह चुके हैं और शिक्षा व संस्कृति के क्षेत्र में उनका लंबा अनुभव रहा है।
धनखड़ ने हाल ही में स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफा दिया था और तब से सार्वजनिक जीवन में अपेक्षाकृत कम सक्रिय हैं। ऐसे में पार्टी किसी ऐसे व्यक्ति को आगे लाना चाहती है जो न केवल संगठनात्मक रूप से मज़बूत हो, बल्कि संसद में भी कुशल संचालन कर सके।
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