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Up Kiran, Digital Desk: बिहार में चुनावी माहौल गर्म होता जा रहा है। हर राजनीतिक दल अपनी पूरी ताकत झोंक रहा है ताकि मतदाताओं का मन जीता जा सके। इसी कड़ी में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के युवा नेता और विपक्षी दल के नेता तेजस्वी यादव ने जातीय राजनीति को अपना प्रमुख हथियार बनाया है। पिछले कुछ महीनों से तेजस्वी लगातार विभिन्न जातीय समूहों के कार्यक्रमों में शामिल होकर अपने पक्ष में वोट बैंक जुटाने की कोशिश में लगे हैं।
29 जून को तेजस्वी यादव पटना के बापू सभागार में आयोजित वैश्य समाज के प्रतिनिधि सम्मेलन को संबोधित करेंगे। यह कदम साफ संकेत देता है कि वे वैश्य समुदाय को अपनी ओर आकर्षित करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। बिहार की राजनीति में वैश्य समाज का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि उन्हें भाजपा का मजबूत वोट बैंक माना जाता है। तेजस्वी की यह पहल भाजपा के आधार को कमजोर करने की दिशा में एक अहम प्रयास है।
बीजेपी के वोट बैंक पर तेजस्वी की नजर
1990 के दशक में लालू प्रसाद यादव ने बिहार की राजनीति में पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग को अपनी ताकत बनाया था। उस दौर में यादव-मुस्लिम गठजोड़ (MY समीकरण) ने राजनैतिक तस्वीर बदल दी। लेकिन अब तेजस्वी यादव ने आरजेडी को सभी जातियों की पार्टी बनाने का नया नारा दिया है। वे लगातार विभिन्न जातीय सम्मेलनों में भाग लेकर एक समावेशी छवि पेश करने की कोशिश कर रहे हैं।
वैश्य सम्मेलन में दूसरी बार शामिल होना इस बात का संकेत है कि तेजस्वी विशेष रूप से भाजपा के मजबूत वोट बैंक को चुनौती देना चाहते हैं। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि तेजस्वी की यह चाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वोटर बेस को कमजोर करने की दिशा में एक रणनीतिक कदम है।
जातीय संगठनों में सक्रियता का क्रम
फरवरी से अब तक तेजस्वी यादव आठ अलग-अलग जातीय सम्मेलनों में शरीक हो चुके हैं। फरवरी के शुरुआत में उन्होंने तेली समुदाय की हुंकार रैली में हिस्सा लिया। फिर रविदास समाज और मुसहर-भुइयां समुदाय के कार्यक्रमों में वे प्रमुख अतिथि रहे। अप्रैल में संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर की जयंती पर आयोजित समारोहों में भी उन्होंने भागीदारी की। इसके अलावा राजपूत, पासी और अति पिछड़ा समुदाय के सम्मेलनों में उनकी उपस्थिति ने आरजेडी की व्यापक जातीय पहुंच को दर्शाया।
इन आयोजनों के माध्यम से तेजस्वी यादव का मकसद साफ है—सभी जातीय समूहों को जोड़कर एक मजबूत और समावेशी राजनीतिक गठजोड़ बनाना। यह रणनीति बिहार के जटिल जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए तैयार की गई है, जिससे वे भाजपा और अन्य प्रतिद्वंद्वी दलों के वोट बैंक को प्रभावित कर सकें।
क्या ये रणनीति काम करेगी?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तेजस्वी यादव की यह चाल आरजेडी को नए वोटर दिलाने में मददगार साबित हो सकती है, लेकिन इसे कारगर बनाने के लिए उन्हें सामाजिक और विकास के मुद्दों पर भी ध्यान देना होगा। बिहार के मतदाता अब केवल जातिगत आधार पर ही वोट नहीं करते, बल्कि विकास, रोजगार और शिक्षा जैसे विषय भी उनकी प्राथमिकता में हैं।
फिलहाल, तेजस्वी यादव का जोर जातीय पहचान पर बढ़ता नजर आ रहा है, जो बिहार की राजनीतिक बिसात पर एक नया अध्याय लिख सकता है।
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