
Up Kiran, Digital Desk: विश्व मंच पर आर्थिक दबाव और संरक्षणवादी नीतियों को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है। अमेरिका द्वारा हाल ही में कई देशों पर भारी व्यापार शुल्क (टैरिफ) लगाने के फैसले ने न सिर्फ वैश्विक बाजारों में हलचल मचा दी है, बल्कि कई राष्ट्रों ने इसे आर्थिक दबाव की रणनीति के रूप में देखा है। इस मुद्दे पर रूस और भारत दोनों ने सख्त प्रतिक्रिया दी है, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि वाशिंगटन की नीति को अब केवल व्यापारिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि वैश्विक सत्ता संतुलन के खतरे के रूप में भी देखा जा रहा है।
रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा ने कहा कि अमेरिका की मौजूदा रणनीति, जिसमें आर्थिक दबाव और प्रतिबंध शामिल हैं, दरअसल उसकी घटती अंतरराष्ट्रीय पकड़ का संकेत है। ज़खारोवा के मुताबिक, अमेरिका अपने प्रभुत्व को बनाए रखने की बेचैनी में अब नव-उपनिवेशवाद की राह पर चल पड़ा है और जो देश स्वतंत्र निर्णय लेना चाहते हैं, उन पर आर्थिक दबाव बना रहा है।
ज़खारोवा ने यह भी संकेत दिया कि अमेरिका की यह नीति केवल व्यापार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उभरती बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को रोकने का प्रयास है। उन्होंने कहा कि वर्तमान दौर में प्रतिबंध और आर्थिक पाबंदियाँ एक वैश्विक प्रवृत्ति बन चुकी हैं, जिनका असर विश्व के अनेक देशों पर महसूस किया जा रहा है।
ब्रिक्स देशों के सहयोग की ओर इशारा करते हुए ज़खारोवा ने कहा कि अमेरिका का टैरिफ निर्णय इस साझेदारी की स्वतंत्रता पर सीधा प्रहार है। उन्होंने दावा किया कि ब्रिक्स समेत कई विकासशील देश इस तरह की रणनीति के खिलाफ एकजुट हैं और रूस को इन देशों का मजबूत समर्थन मिल रहा है, विशेषकर वैश्विक दक्षिण में।
भारत की ओर से भी अमेरिका की चेतावनी पर तीखी प्रतिक्रिया आई है। राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा रूस से तेल आयात पर अतिरिक्त शुल्क लगाने की धमकी के बाद भारत ने इस कदम को अनुचित और पक्षपातपूर्ण बताया। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने ऊर्जा हितों को प्राथमिकता देगा और किसी भी प्रकार के विदेशी दबाव को स्वीकार नहीं करेगा।
--Advertisement--