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नासिक में बुधवार को शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) ने एक अनोखा प्रयोग करते हुए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का इस्तेमाल कर शिवसेना संस्थापक बाला साहेब ठाकरे की आवाज को फिर से जीवित कर दिया। इस तकनीक की मदद से बाल ठाकरे जैसी गूंजदार आवाज में करीब 13 मिनट का भाषण सुनाया गया। भाषण की शुरुआत भावनात्मक अंदाज़ में हुई — “मेरे हिंदू भाइयों, बहनों और माताओं।” इस भाषण में भारतीय जनता पार्टी और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिंदे गुट की शिवसेना को सीधे निशाने पर लिया गया।

शिवसेना (UBT) के मुताबिक, यह भाषण ऐसा है जैसा आज के राजनीतिक हालात में अगर बाला साहेब जीवित होते तो शायद वैसा ही बोलते। इस भाषण को नासिक में हुई पार्टी रैली के दौरान हजारों समर्थकों के सामने सुनाया गया।

भाजपा का तीखा प्रतिरोध, उद्धव ठाकरे पर बोला हमला

भाजपा ने इस पूरे घटनाक्रम को बेहद हल्के में लेते हुए इसकी कड़ी आलोचना की। महाराष्ट्र भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने इसे ‘बचकानी हरकत’ बताया। उन्होंने उद्धव ठाकरे और उनकी पार्टी पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि बाल ठाकरे ने अपनी पूरी जिंदगी जिन विचारों के खिलाफ संघर्ष किया, आज उन्हीं के साथ खड़े होकर उन्हीं की आवाज का इस्तेमाल किया जा रहा है।

बावनकुले ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “अगर आज बाला साहेब जिंदा होते, तो इस तरह की हरकत करने वालों को लात मारकर बाहर निकालते।” उन्होंने उद्धव ठाकरे गुट के इस कदम को निंदनीय बताते हुए कहा कि यह उनके विचारों की मर्यादा का उल्लंघन है।

‘उद्धव की खुद की आवाज का असर नहीं’ – भाजपा की टिप्पणी

बावनकुले ने उद्धव ठाकरे की आलोचना करते हुए कहा कि अब उनकी खुद की आवाज में जनता कोई खास असर महसूस नहीं करती। शायद यही वजह है कि अब वह अपने विचारों को लोगों तक पहुंचाने के लिए बाल ठाकरे की आवाज का सहारा ले रहे हैं।

उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा, “बाला साहेब जिन सिद्धांतों और मुद्दों के लिए जीवन भर खड़े रहे, उन्हीं के खिलाफ जाकर अब उनकी आवाज का इस्तेमाल करना सरासर गलत है। उनके विचारों को पहले ही पीछे छोड़ दिया गया है, अब कम से कम उनकी आवाज का तो दुरुपयोग मत कीजिए।”

राजनीतिक माहौल में गरमाई बहस

इस पूरे घटनाक्रम ने महाराष्ट्र की राजनीति में एक नई बहस छेड़ दी है। एक ओर जहां शिवसेना (UBT) इसे बाला साहेब की विरासत को जीवित रखने का प्रयास बता रही है, वहीं दूसरी ओर भाजपा और शिंदे गुट इसे एक राजनीतिक नाटक मान रहे हैं।

क्या AI का राजनीतिक उपयोग उचित है?

इस घटना ने यह भी सवाल खड़ा किया है कि क्या किसी दिवंगत नेता की आवाज को तकनीक की मदद से पुनर्जीवित करना और उसे राजनीतिक मंच पर इस्तेमाल करना नैतिक रूप से सही है? यह बहस आगे और भी गर्माने की संभावना है।