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बांग्लादेश कभी अपनी सांस्कृतिक समृद्धि और प्रगतिशील छवि के लिए जाना जाता था। आज कट्टरपंथी इस्लामिक समूहों और आतंकवादी संगठनों के खौफनाक साये में है। बीते साल अगस्त में शेख हसीना की सरकार के पतन और उनके देश छोड़ने के बाद आईएसआईएस-बांग्लादेश जैसे संगठनों ने तेजी से अपनी जड़ें मजबूत की हैं। मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार की ढीली नीतियों ने इन कट्टरपंथियों को खुली छूट दे दी है। इसके चलते हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों पर हमले बढ़े हैं। ये स्थिति न केवल बांग्लादेश बल्कि पूरे दक्षिण एशिया और वैश्विक सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बन गई है।
कट्टरपंथियों के विरुद्ध यूनुस का नरम रवैया
शेख हसीना के शासनकाल में बांग्लादेश ने आतंकवाद के विरुद्ध मजबूत कदम उठाए थे। 2019 में उनके आतंकवाद विरोधी अभियानों ने आईएसआईएस-बांग्लादेश जैसे संगठनों को कमजोर कर दिया था। इसमें कई बड़े आतंकी नेता या तो मारे गए या अरेस्ट हुए। मगर अगस्त 2024 में हसीना की सरकार के पतन और उनके देश छोड़ने के बाद बांग्लादेश में अस्थिरता का दौर शुरू हुआ। मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार पर कट्टरपंथियों के विरुद्ध नरम रवैया अपनाने का इल्जाम है, जिसने इन संगठनों को फिर से सिर उठाने का मौका दे दिया।
आईएसआईएस-बांग्लादेश 2014 में उभरा। ये इस्लामिक स्टेट की एक शाखा है और बांग्लादेश में शरिया-आधारित इस्लामिक राज्य की स्थापना का खुला ऐलान करता है। इसने अपनी पहली बड़ी मौजूदगी 2015 में ढाका में विदेशी नागरिकों (इतालवी और जापानी) पर हमले से दर्ज की। मगर इसका सबसे कुख्यात हमला था 2016 का ढाका कैफे हमला, जिसमें 22 लोग मारे गए। इस हमले ने दुनिया को बांग्लादेश में आतंकवाद की बढ़ती ताकत का अहसास कराया।
हालांकि हसीना सरकार के सख्त अभियानों ने संगठन को कमजोर किया था, मगर वर्तमान अस्थिरता ने इसे फिर से सक्रिय कर दिया। संगठन अब सोशल मीडिया और एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग प्लेटफॉर्म जैसे टेलीग्राम का इस्तेमाल करके अपनी कट्टरपंथी विचारधारा फैला रहा है और युवाओं की भर्ती कर रहा है। शिया मुसलमानों, हिंदुओं और धर्मनिरपेक्ष ब्लॉगर्स को निशाना बनाना इसकी प्राथमिक रणनीति है।
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