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Up Kiran, Digital Desk: क्या वैश्विक व्यापार का परिदृश्य एक बार फिर बदलने वाला है? 2025 में अमेरिकी सत्ता में संभावित परिवर्तनों और व्यापार नीतियों को लेकर जारी अटकलों के बीच, रूस के प्रभावशाली नेता दिमित्री मेडवेदेव (Dmitry Medvedev) का एक बयान सुर्खियों में है, जिसने भारत और रूस के आर्थिक संबंधों पर नए सिरे से चर्चा छेड़ दी है। मेडवेदेव ने स्पष्ट रूप से संकेत दिया है कि यदि अमेरिका, खासकर डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) के नेतृत्व में, संरक्षणवादी नीतियां और उच्च टैरिफ (Tariffs) लागू करता है, तो भारत और रूस जैसे देशों को आपसी सहयोग बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। यह केवल व्यापार का मामला नहीं, बल्कि वैश्विक भू-राजनीतिक (Geopolitics) समीकरणों में एक बड़े बदलाव का संकेत भी है।

ट्रंप की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति का भूत और 2025 का डर:

डोनाल्ड ट्रंप जब राष्ट्रपति थे, तब उनकी 'अमेरिका फर्स्ट' (America First) की नीति के तहत उन्होंने कई देशों पर आयात शुल्क बढ़ाए थे, जिससे वैश्विक स्तर पर व्यापार युद्ध (Trade War) छिड़ गया था। उनका मानना था कि ये शुल्क अमेरिकी उद्योगों और नौकरियों की रक्षा के लिए आवश्यक हैं। अब, 2025 में उनके संभावित सत्ता में वापसी की संभावनाओं के बीच, यह चिंता फिर से उभर रही है कि क्या अमेरिका एक बार फिर आक्रामक व्यापार नीतियां अपनाएगा, जिससे दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं (Economy) प्रभावित होंगी।
ऐसे में, मेडवेदेव का बयान एक महत्वपूर्ण संदेश देता है: यदि अमेरिका उन देशों पर टैरिफ की दीवारें खड़ी करता है, जिनके साथ वह अपने व्यापारिक संबंधों को प्रतिकूल मानता है, तो उन देशों के पास एक-दूसरे के साथ मिलकर नए रास्ते तलाशने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा। यह विशेष रूप से भारत और रूस के लिए प्रासंगिक है, जो पहले से ही गहरे रणनीतिक और आर्थिक संबंधों को साझा करते हैं।

दिमित्री मेडवेदेव का बयान: भारत-रूस को सहयोग के लिए मजबूर करने वाली 'अमेरिकी टैरिफ दीवारें'

रूस के पूर्व राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री, और वर्तमान में सुरक्षा परिषद के उप प्रमुख, दिमित्री मेडवेदेव ने खुले तौर पर कहा है कि यदि अमेरिका 25% जैसे उच्च टैरिफ लगाता है, तो यह भारत और रूस जैसे देशों को आर्थिक सहयोग के लिए मजबूर करेगा। उनका तर्क है कि ऐसी 'टैरिफ दीवारें' उन देशों को अपने हितों की रक्षा के लिए नए व्यापार मार्ग और आर्थिक साझेदारियां विकसित करने के लिए प्रेरित करेंगी। 

यह बयान न केवल अमेरिकी व्यापार नीति की आलोचना है, बल्कि भारत और रूस के बीच एक मजबूत आर्थिक ब्लॉक बनाने की वकालत भी है, जो वैश्विक आर्थिक ध्रुवीकरण (Economic Polarization) की ओर इशारा करता है। मेडवेदेव का कहना है कि जब एक देश (अमेरिका) दूसरे देशों के लिए दरवाजे बंद करता है, तो वे देश अपने लिए नए दरवाजे खोलते हैं।

भारत पर संभावित प्रभाव और उसकी रणनीति:

भारत के लिए अमेरिकी टैरिफ एक दोधारी तलवार साबित हो सकते हैं।

निर्यात पर असर: यदि अमेरिका भारतीय उत्पादों पर उच्च टैरिफ लगाता है, तो भारत के लिए अमेरिकी बाजार में अपने उत्पादों का निर्यात करना महंगा हो जाएगा, जिससे भारतीय निर्यातकों (Exporters) को नुकसान होगा। इससे भारत की आर्थिक वृद्धि (Economic Growth) धीमी पड़ सकती है।

आपूर्ति श्रृंखला में बाधा: वैश्विक व्यापार युद्ध से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला (Supply Chain) बाधित हो सकती है, जिससे भारत में कुछ वस्तुओं की कीमतें बढ़ सकती हैं (मुद्रास्फीति)।

निवेशक चिंता: अमेरिकी नीतियों से उत्पन्न अनिश्चितता विदेशी निवेश (Foreign Investment) को प्रभावित कर सकती है, क्योंकि निवेशक सुरक्षित ठिकानों की तलाश करेंगे।

भारत की संभावित रणनीति: संबंधों का संतुलन: भारत ने हमेशा एक संतुलित विदेश नीति अपनाई है। वह अमेरिका के साथ अपने रणनीतिक संबंधों (Strategic Ties) और रूस के साथ अपने ऐतिहासिक और रक्षा संबंधों (Defense Relations) के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश करेगा।

बाजार विविधीकरण: भारत अपने निर्यात बाजारों का और अधिक विविधीकरण कर सकता है, ताकि किसी एक देश पर निर्भरता कम हो। अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य पूर्व जैसे नए बाजारों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।

आत्मनिर्भर भारत: 'आत्मनिर्भर भारत' (Atmanirbhar Bharat) अभियान को और गति मिल सकती है, जिससे देश में उत्पादन बढ़ेगा और आयात पर निर्भरता कम होगी।

BRICS और अन्य मंच: भारत BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) जैसे बहुपक्षीय मंचों को मजबूत करने में सक्रिय भूमिका निभा सकता है, जो पश्चिमी देशों के प्रभाव को संतुलित करने के लिए एक आर्थिक विकल्प प्रस्तुत करते हैं।

रूस की स्थिति और भारत के साथ बढ़ती साझेदारी:

पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों (Sanctions) के कारण रूस पहले से ही नए व्यापारिक साझेदारों और बाजारों की तलाश में है। भारत उसके लिए एक महत्वपूर्ण विकल्प बनकर उभरा है।

ऊर्जा सुरक्षा: रूस भारत के लिए तेल और गैस का एक महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता बन गया है, जिससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा (Energy Security) सुनिश्चित होती है। अमेरिकी टैरिफ से यह सहयोग और गहरा हो सकता है।

रक्षा सहयोग: दशकों से भारत और रूस के बीच मजबूत रक्षा संबंध रहे हैं। भविष्य में, यह संबंध और अधिक प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और संयुक्त उत्पादन की ओर बढ़ सकता है।

डी-डॉलर्राईजेशन (De-dollarization): दोनों देश व्यापार के लिए अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने के प्रयासों में सक्रिय हैं, जिससे अमेरिकी प्रतिबंधों का प्रभाव कम हो सके। मेडवेदेव का बयान इस प्रक्रिया को और तेज कर सकता है।

2025: वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य का निर्णायक मोड़

2025 न केवल अमेरिकी चुनावों के कारण, बल्कि वैश्विक आर्थिक और भू-राजनीतिक परिवर्तनों के कारण भी महत्वपूर्ण होगा।

बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था: रूस और चीन जैसे देश एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था (Multipolar World Order) के निर्माण पर जोर दे रहे हैं, जहां शक्ति का केंद्र केवल अमेरिका न हो। भारत, अपनी बढ़ती आर्थिक और रणनीतिक शक्ति के साथ, इस समीकरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

नई व्यापारिक धुरी: यदि अमेरिका संरक्षणवादी नीतियों को अपनाता है, तो यह भारत, रूस, चीन और अन्य विकासशील देशों के बीच एक नई व्यापारिक धुरी को मजबूत कर सकता है।

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