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बिहार की राजनीति कभी शांत नहीं रहती। चुनावी मौसम आते ही सियासी बयानबाज़ी तेज हो जाती है, गठबंधन बदलते हैं, दोस्ती दुश्मनी में और दुश्मनी दोस्ती में तब्दील हो जाती है। लेकिन इस बार हलचल का कारण वही पुराना चेहरा है — मुख्यमंत्री नीतीश कुमार। हाल ही में उनके एक बयान ने पूरे राज्य में सियासी भूचाल ला दिया है।
क्या बोले नीतीश कुमार?
रविवार को पटना में हुए ‘खेलो इंडिया यूथ गेम्स’ के उद्घाटन समारोह के दौरान नीतीश कुमार ने एक ऐसा बयान दे दिया जिससे अटकलों का बाजार गर्म हो गया। उन्होंने कहा कि मुझे मुख्यमंत्री किसने बनाया था? स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने। मैं हमेशा यहीं रहूंगा। मेरी पार्टी ने मुझे पहले भी कई बार इधर से उधर भेजा है, लेकिन ऐसा अब दोबारा नहीं होगा।
साफ तौर पर उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की कि वे भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ अपने रिश्तों को बरकरार रखना चाहते हैं। लेकिन नीतीश कुमार की राजनीतिक यात्रा को देखते हुए जनता और विपक्ष को उन पर आसानी से भरोसा नहीं हो रहा।
इतिहास गवाह है: नीतीश की ‘यू-टर्न’ पॉलिटिक्स
नीतीश कुमार को यूं ही "पलटी मारने वाला नेता" नहीं कहा जाता। पिछले दो दशकों में उन्होंने जिस तरह से राजनीतिक पाला बदला है, उससे विरोधियों को उन्हें घेरने का भरपूर मौका मिला है:
1996-2013: बीजेपी के साथ गठबंधन में थे और लंबे समय तक NDA का हिस्सा रहे।
2013: नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने पर गठबंधन तोड़ दिया।
2015: लालू यादव और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाकर सत्ता में लौटे।
2017: फिर से पलटी मारते हुए बीजेपी से हाथ मिला लिया और मुख्यमंत्री बने रहे।
2022: एक बार फिर महागठबंधन की ओर लौटे और बीजेपी को झटका दिया।
2024: केंद्र में एनडीए की वापसी के साथ ही नीतीश कुमार ने दोबारा बीजेपी का साथ थाम लिया।
इन तमाम घटनाओं के कारण लोगों को ये भरोसा करना मुश्किल हो रहा है कि वे अब "स्थायी" रूप से किसी एक खेमे में रहेंगे।
चुनाव नजदीक: रणनीति या मजबूरी?
बिहार विधानसभा चुनाव में अब कुछ ही महीने बाकी हैं। इस समय नीतीश कुमार का बीजेपी के साथ खड़े रहने का दावा कई मायनों में महत्वपूर्ण है:
जनता दल (यूनाइटेड) की पकड़ कमजोर पड़ी है, और नीतीश को सत्ता में बने रहने के लिए मजबूत गठबंधन की जरूरत है।
बीजेपी को बिहार में एक अनुभवी चेहरा चाहिए, और नीतीश कुमार उस भूमिका में फिट बैठते हैं, भले ही वह कितने ही बार पाला क्यों न बदल चुके हों।
राजद और कांग्रेस का महागठबंधन इस बार पूरी तैयारी में दिख रहा है, जो एनडीए के लिए चिंता का विषय बन सकता है।
ऐसे में नीतीश का बीजेपी के साथ जुड़ाव रणनीतिक मजबूरी भी हो सकता है और छवि सुधारने की कोशिश भी।
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