Up Kiran, Digital Desk: भगवान गणेश, जिन्हें हम प्यार से बप्पा, गणपति और विघ्नहर्ता जैसे कई नामों से बुलाते हैं, हर पूजा में सबसे पहले पूजे जाते हैं। मान्यता है कि उनकी पूजा के बिना कोई भी शुभ काम पूरा नहीं होता। हर महीने भगवान गणेश को समर्पित एक बहुत ही खास दिन आता है, जिसे संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। जैसा कि नाम से ही पता चलता है, यह दिन जीवन के सभी संकटों को हरने वाला होता है।
मार्गशीर्ष महीने में पड़ने वाली इस चतुर्थी को 'गणाधिप संकष्टी चतुर्थी' के नाम से जाना जाता है। इस दिन जो कोई भी पूरी श्रद्धा से व्रत रखता है और भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करता है, उसके जीवन से सभी परेशानियाँ और बाधाएँ दूर हो जाती हैं।
इस व्रत का पूरा फल तभी मिलता है, जब पूजा के साथ-साथ इससे जुड़ी कथा भी सुनी या पढ़ी जाए। तो चलिए, आज हम आपको वही चमत्कारी कथा सुनाते हैं, जिसे सुनने मात्र से गणपति बप्पा प्रसन्न हो जाते हैं।
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, त्रेतायुग में राजा दशरथ अयोध्या पर राज करते थे। एक बार वे शिकार खेलने गए और अनजाने में उनके बाण से श्रवण कुमार की मृत्यु हो गई। श्रवण कुमार के अंधे माता-पिता ने पुत्र वियोग में राजा दशरथ को श्राप दे दिया।
इस श्राप के कारण राजा के मन में बहुत दुख और ग्लानि भर गई। वे शांति की तलाश में भटकते हुए एक दिन महर्षि वशिष्ठ के आश्रम पहुँचे। उन्होंने अपनी सारी व्यथा महर्षि को सुनाई। तब महर्षि वशिष्ठ ने उन्हें बताया कि उनके ऊपर एक बड़ा संकट आने वाला है और इस संकट से मुक्ति पाने के लिए उन्हें भगवान गणेश का 'संकटनाशन स्तोत्र' का पाठ और संकष्टी चतुर्थी का व्रत करना चाहिए।
राजा दशरथ ने महर्षि के बताए अनुसार ही पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा। उन्होंने दिन भर उपवास किया और शाम को चंद्रमा निकलने पर भगवान गणेश की पूजा की। इस व्रत के प्रभाव से उनके मन को शांति मिली और आने वाले संकटों का प्रभाव भी कम हो गया।
एक और कथा के अनुसार, जब भगवान राम को वनवास हुआ और रावण ने माता सीता का हरण कर लिया, तब वे सीता जी की खोज में भटक रहे थे।[6][7] इसी दौरान उनकी भेंट वानरों से हुई। जब वानर सेना सीता जी को खोजने के लिए समुद्र पार जाने में असमर्थ हो रही थी, तब सभी ने मिलकर भगवान गणेश का ध्यान किया और संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा। कहते हैं कि इस व्रत के प्रताप से ही हनुमान जी को समुद्र लांघने की शक्ति मिली और वे सीता जी का पता लगा पाए।
कैसे करें इस दिन पूजा?
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
इसके बाद व्रत का संकल्प लें।
पूजा की चौकी पर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें।
उन्हें लाल फूल, दूर्वा, सिंदूर और मोदक या लड्डू का भोग लगाएं।
'ॐ गं गणपतये नमः' मंत्र का जाप करें।
दिन भर फलाहार पर रहें और शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत खोलें।
यह व्रत विशेष रूप से माताएँ अपनी संतान की लंबी उम्र और खुशहाल जीवन के लिए रखती हैं। मान्यता है कि इस दिन सच्चे मन से की गई पूजा और सुनी गई कथा से भगवान गणेश हर मनोकामना पूरी करते हैं और जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।


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