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नई दिल्ली — क्या पति द्वारा गुप्त रूप से पत्नी की कॉल रिकॉर्ड करना अदालत में मान्य साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है? इस सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अहम टिप्पणी करते हुए स्थिति स्पष्ट की है।

मामला एक वैवाहिक विवाद से जुड़ा था, जहां पति ने पत्नी की कॉल रिकॉर्डिंग को तलाक की कार्यवाही में प्रस्तुत किया। पहले, संबंधित हाईकोर्ट ने इसे अस्वीकार्य मानते हुए कहा था कि ऐसी रिकॉर्डिंग निजता के अधिकार का उल्लंघन करती है और उसे सबूत के रूप में नहीं माना जा सकता।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पूरी तरह नकारते हुए कहा कि परिस्थितियों के आधार पर कॉल रिकॉर्डिंग को साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है, बशर्ते वह प्रामाणिक हो और किसी कानूनी प्रक्रिया में सहायक हो।

न्यायालय ने यह भी जोड़ा कि ऐसी रिकॉर्डिंग तभी मान्य होगी जब उसका उद्देश्य कानूनी न्याय प्राप्त करना हो, न कि किसी की निजता का दुरुपयोग करना। कोर्ट ने यह संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया कि एक ओर नागरिक की निजता संरक्षित रहे और दूसरी ओर न्यायिक प्रक्रिया को भी निष्पक्ष रूप से पूरा किया जा सके।

इस फैसले से स्पष्ट हो गया है कि डिजिटल साक्ष्य को अदालतों में पेश करने से पहले उसके स्रोत, उद्देश्य और वैधता की गहराई से जांच आवश्यक है।