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Up Kiran, Digital Desk: भारत में फैशन उद्योग एक महत्वपूर्ण बदलाव से गुजर रहा है, जहाँ 'सचेत परिधान' (Conscious Clothing) का चलन तेजी से बढ़ रहा है। उपभोक्ता अब सिर्फ स्टाइल और कीमत पर ही नहीं, बल्कि कपड़ों के पर्यावरणीय प्रभाव और नैतिक उत्पादन पद्धतियों पर भी ध्यान दे रहे हैं। यह बदलाव इस बात का संकेत है कि भारत में फैशन अब सिर्फ बाहरी दिखावे से कहीं आगे, एक जिम्मेदार और टिकाऊ भविष्य की ओर बढ़ रहा है।

सचेत परिधान' का मतलब ऐसे कपड़े हैं जो पर्यावरण के अनुकूल सामग्रियों से बनाए गए हैं, जैसे जैविक कपास (organic cotton), पुनर्नवीनीकरण सामग्री (recycled materials), या प्राकृतिक फाइबर। इसमें उत्पादन प्रक्रिया के दौरान पानी और ऊर्जा की खपत को कम करना, हानिकारक रसायनों से बचना, और कार्बन फुटप्रिंट को घटाना भी शामिल है।

यह चलन नैतिक उत्पादन प्रथाओं पर भी जोर देता है। इसमें यह सुनिश्चित करना शामिल है कि कपड़े बनाने वाले श्रमिकों को उचित मजदूरी मिले, सुरक्षित कामकाजी माहौल हो, और उनके मानवाधिकारों का सम्मान किया जाए। यह 'फास्ट फैशन' (fast fashion) के विपरीत है, जहाँ सस्ते और तेजी से बनने वाले कपड़ों पर जोर होता है, अक्सर पर्यावरणीय और मानवीय लागत की अनदेखी करके।

भारतीय डिजाइनर और ब्रांड भी इस बदलाव को अपना रहे हैं, पारंपरिक शिल्पों को पुनर्जीवित कर रहे हैं, स्थानीय कारीगरों को सशक्त बना रहे हैं और 'धीमी फैशन' (slow fashion) के सिद्धांतों को बढ़ावा दे रहे हैं। यह न केवल पर्यावरण के लिए अच्छा है, बल्कि भारत की समृद्ध कपड़ा विरासत को भी बनाए रखने में मदद करता है। 

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