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धर्म / अध्यात्म डेस्क। सनातन परंपरा में 'ॐ' अक्षर का अतिमहत्व है। ये अक्षर तीन ध्वनियों ‘अ’, ‘उ’, ‘म’ से बना है। ॐ के उच्चारण में ‘अ’, ‘उ’, ‘म’ अक्षर ब्रह्मा, विष्णु और महेश का बोध कराते हैं। इसलिए 'ॐ' के उच्चारण से इन तीनों शक्तियों का एक साथ आह्वान होता है। ये तीन अक्षर, ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। इसके अलावा महर्षि पतंजलि ने ॐ के उच्चारण को योग बताया है।

तो आज हम जानते हैं ॐ की महिमा।  ‘अ’ - जब हम ‘अ’ का उच्चारण करते हैं तो जीवन ऊर्जा अर्थात प्राण शक्ति शरीर के निचले भाग में
संचरण करती है। ‘उ’ - जब हम ‘उ’ का उच्चारण करते हैं तो यही ऊर्जा शरीर के मध्य भाग में संचरण करती है। ‘म’ का उच्चारण - ‘म’ का उच्चारण बिना मुंह खोले करने पर प्राण शक्ति, शरीर के ऊपरी भाग में संचरण करती है।

इस तरह जब हम एक साथ ‘अ’, ‘उ’, ‘म’ को मिलाकर ॐ का उच्चारण करते हैं तो जीवन ऊर्जा अर्थात् प्राण शक्ति हमारे पूरे शरीर में नीचे से लेकर ऊपर तक विचरण करती है। इस तरह ॐ ध्वनि हमारे पूरे शरीर को प्रभावित करती है और हमारे पूरे तंत्रिका तंत्र को बेहद लाभदायक तरीके से समन्वित करती है।

शास्त्रों के अनुसार 108 बार ॐ का उच्चारण करने से हमे इसका प्रत्यक्ष लाभ दिखने लगता है। महर्षि पतंजलि के अनुसार ॐ का उच्चारण पूर्ण करने के बाद कुछ मिनट के लिए ध्यान अवस्था में रहने के बाद ही उठना लाभदायक रहता है। ॐ का अगर सही तरह से उच्चारण किया जाए तो उससे ब्रह्माण्ड में मौजूद ध्वनि तरंग ऊर्जा से अनेक प्रकार के रोग, शोक दूर किए जा सकते हैं।

ॐ का सही उच्चारण करने से घबराहट और थायराइड की समस्या से छुटकारा मिलता है। इसी तरह रात में सोने से पहले ॐ का उच्चारण करने से भय एवं अनिद्रा की समस्या दूर होती है। ॐ का सही उच्चारण करने से फेंफड़ों से संबंधित समस्याओं का बह निदान हो जाता है। 

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