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Up Kiran, Digital Desk: देश में चुनावी माहौल गरमाया हुआ है, और इस बार विवाद का केंद्र बन गई है मतदाता सूची। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने हाल ही में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में धांधली का आरोप लगाया था। उन्होंने तब बिहार चुनाव में 'मैच फिक्सिंग' की आशंका जताते हुए संकेत दिया था कि विपक्षी दलों के निशाने पर चुनाव आयोग रहेगा। अब, बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले, उनकी आशंकाएं सच होती दिख रही हैं, क्योंकि विपक्षी पार्टियां और चुनाव आयोग आमने-सामने आ गए हैं। हाल ही में चुनाव आयोग द्वारा बिहार में मतदाता सूची के 'विशेष गहन पुनरीक्षण' (SIR) के आदेश ने इस विवाद को हवा दे दी है।
'एनआरसी से भी खतरनाक': ममता बनर्जी का तीखा हमला
बिहार में इस कवायद का न सिर्फ राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस, और वाम दलों जैसे महागठबंधन के घटक दल कड़ा विरोध कर रहे हैं, बल्कि इस आग की लपटें पश्चिम बंगाल तक भी पहुंच गई हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो इसे "एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) से भी ज्यादा खतरनाक" करार दिया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि उनका राज्य, जहां अगले साल चुनाव होने हैं, इस अभियान का असली 'टारगेट' है।
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी चुनाव आयोग के इस कदम पर अपनी आपत्ति जताई है। इस तरह, बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर चुनाव आयोग और विपक्ष के बीच सीधा टकराव देखने को मिल रहा है।
आखिर क्या है चुनाव आयोग का नया आदेश?
चुनाव आयोग ने 24 जून को एक आदेश जारी कर बिहार में 'विशेष गहन पुनरीक्षण' प्रक्रिया शुरू करने की घोषणा की थी। आयोग का कहना है कि यह कदम जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21(3) और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के तहत पूरी तरह वैध है, जो आयोग को किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में किसी भी समय मतदाता सूची के विशेष संशोधन का आदेश देने का अधिकार देता है।
इस संशोधन प्रक्रिया के तहत, सभी नागरिकों को व्यक्तिगत रूप से 'गणना फॉर्म' भरना होगा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि 1 जनवरी 2003 के बाद मतदाता सूची में पंजीकृत हुए सभी मतदाताओं को अपनी नागरिकता के प्रमाण से संबंधित दस्तावेज जमा करने होंगे। यह प्रक्रिया 25 जून से शुरू होकर 30 सितंबर तक चलेगी, और अंतिम मतदाता सूची का प्रकाशन इसी दिन किया जाएगा।
'गहन संशोधन' की क्यों पड़ी जरूरत? आयोग ने दिए कई कारण
चुनाव आयोग ने इस 'गहन पुनरीक्षण' के पीछे कई कारण गिनाए हैं। इनमें तेजी से बढ़ता शहरीकरण, आंतरिक पलायन, मृत मतदाताओं के नाम सूची से हटाने में देरी, नए योग्य युवाओं का पंजीकरण, और कथित तौर पर अवैध विदेशी नागरिकों के नामों का शामिल होना शामिल है। आयोग का तर्क है कि इन सभी वजहों से मतदाता सूची की शुद्धता प्रभावित होती है, और इसे ठीक करने के लिए यह विशेष अभ्यास बेहद जरूरी है।
इस 'गहन पुनरीक्षण' के दौरान, बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) घर-घर जाकर प्रत्येक मतदाता से व्यक्तिगत जानकारी लेंगे। हर मतदाता को एक अलग 'व्यक्तिगत गणना फॉर्म' भरना होगा। 2003 के बाद मतदाता सूची में नाम जुड़वाने वालों को अपने नागरिक होने का प्रमाण भी देना होगा। इसमें पासपोर्ट, जन्म प्रमाण पत्र, माता-पिता के मतदाता पहचान पत्र, पेंशन भुगतान आदेश, भूमि रिकॉर्ड, स्थानीय निकाय द्वारा जारी निवास प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज मान्य माने जाएंगे।
इससे पहले, BLO घरों में जाकर 'गणना पैड' भरवाते थे, जो परिवार के मुखिया द्वारा भर दिया जाता था। लेकिन इस बार, हर व्यक्ति को अलग-अलग दस्तावेज और फॉर्म भरने होंगे। साथ ही, नए मतदाता पंजीकरण के लिए फॉर्म 6 में अब एक अतिरिक्त घोषणापत्र जोड़ा गया है, जिसमें नागरिकता का स्पष्ट प्रमाण देना अनिवार्य होगा।
'इंडिया' गठबंधन का कड़ा विरोध: 'गरीबों से वोटिंग अधिकार छीनने की साजिश'
चुनाव आयोग के इस आदेश का महागठबंधन के नेताओं ने जोरदार विरोध किया है। शुक्रवार को आरजेडी नेता तेजस्वी यादव, कांग्रेस नेता पवन खेड़ा, सीपीआई (एमएल) के नेता दीपंकर भट्टाचार्य सहित अन्य घटक दलों ने संयुक्त रूप से प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुनाव आयोग के आदेश का विरोध किया। उन्होंने आरोप लगाया कि यह बीजेपी द्वारा गरीबों से वोटिंग अधिकार छीनने की साजिश है। 'इंडिया' गठबंधन का एक प्रतिनिधिमंडल जल्द ही चुनाव आयोग से मुलाकात करेगा और अपनी शिकायत दर्ज कराएगा, जिसके बाद इसे लेकर बड़े पैमाने पर आंदोलन की भी तैयारी है।
कांग्रेस ने इस संशोधन अभ्यास का विरोध करते हुए कहा है कि यह राज्य मशीनरी का उपयोग करके मतदाताओं को जानबूझकर बाहर करने का जोखिम उठाता है। कांग्रेस का कहना है कि यह चुनाव आयोग द्वारा यह स्पष्ट स्वीकारोक्ति है कि भारत की मतदाता सूची के साथ सब कुछ ठीक नहीं है। "यह बिल्कुल वैसा ही है जैसा कि कांग्रेस पार्टी और विपक्ष के नेता राहुल गांधी महाराष्ट्र के साक्ष्यों के साथ बार-बार बता रहे हैं," कांग्रेस ने कहा।
गौरतलब है कि बिहार में इस साल नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं, जबकि पश्चिम बंगाल, केरल, असम, पुडुचेरी और तमिलनाडु जैसे पांच अन्य राज्यों में विधानसभा चुनाव 2026 में प्रस्तावित हैं।
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