
हाल ही में ChatGPT ने Ghibli स्टाइल में इमेज बनाने का एक नया फीचर लॉन्च किया, जिसने इंटरनेट पर जबरदस्त लोकप्रियता हासिल की। सोशल मीडिया पर इस फीचर को लेकर ऐसा क्रेज देखा गया कि यूजर्स ने इसे जमकर इस्तेमाल किया। नतीजा यह हुआ कि कुछ समय के लिए ChatGPT का सर्वर ही ठप पड़ गया। इस पर OpenAI के CEO सैम ऑल्टमैन को सामने आकर यूजर्स से संयम बरतने की अपील करनी पड़ी।
सामान्य अपील से उठा बड़ा सवाल
सैम ऑल्टमैन की यह अपील केवल एक तकनीकी समस्या को लेकर नहीं थी। उन्होंने जो बात कही, उसने पर्यावरण से जुड़ी बहस को भी जन्म दे दिया। उन्होंने कहा कि यह देखना अच्छा है कि लोग ChatGPT से रचनात्मक इमेज बना रहे हैं, लेकिन इसके चलते हमारे GPU (ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट) "पिघल" रहे हैं। उनके इस बयान ने यह साफ कर दिया कि तकनीक का यह रोमांचक रूप हमारे पर्यावरण पर भारी पड़ सकता है।
यूजर्स के लिए तय की गई लिमिट
Ghibli स्टाइल इमेज की बढ़ती मांग और GPU पर दबाव को देखते हुए OpenAI ने फ्री यूजर्स के लिए सीमा तय कर दी है। अब कोई भी फ्री यूजर एक दिन में अधिकतम तीन इमेज ही जेनरेट कर सकता है। यह फैसला GPU की लोड मैनेजमेंट और एनर्जी खपत को कंट्रोल में रखने के उद्देश्य से लिया गया है।
AI इमेज जेनरेशन और बिजली की खपत
अब असली सवाल यह है कि एक AI इमेज बनाने में आखिर कितनी ऊर्जा खर्च होती है? आंकड़ों के मुताबिक, एक Ghibli स्टाइल इमेज जेनरेट करने में जितनी बिजली लगती है, उतनी एक 60 वॉट का LED बल्ब करीब 3.25 मिनट तक जलाने में खर्च होती है। यह ऊर्जा की खपत सामान्य टेक्स्ट जेनरेशन से लगभग 10 गुना ज्यादा होती है।
रिपोर्ट्स बताती हैं कि इस प्रक्रिया में प्रति घंटे 2.5 से 3.5 वॉट तक बिजली लगती है। इसका मतलब है कि आप इतनी ऊर्जा में अपने स्मार्टफोन को 50 प्रतिशत तक चार्ज कर सकते हैं।
डेटा सेंटर और GPU की भूमिका
AI इमेज प्रोसेसिंग का यह काम बड़े डेटा सेंटर्स में होता है, जिनमें शक्तिशाली GPU लगाए जाते हैं। इन GPU को इस तरह डिजाइन किया गया है कि ये भारी मात्रा में डेटा को प्रोसेस कर सकें। जब ये पूरी क्षमता पर चलते हैं, तो एक-एक GPU 700 वॉट तक की बिजली खा सकता है।
सिर्फ बिजली नहीं, पानी की भी भारी खपत
इन GPU को लगातार ठंडा रखने के लिए डेटा सेंटर्स में विशेष कूलिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है, जो लाखों लीटर पानी की खपत करता है। यानी, सिर्फ बिजली नहीं, बल्कि पानी की बर्बादी भी एक गंभीर मुद्दा है।
तकनीकी गणना की जटिलता
AI की मदद से एक इमेज जेनरेट करने में लगभग 1 ट्रिलियन FLOP (फ्लोटिंग प्वाइंट ऑपरेशन) की जरूरत होती है। इसकी तुलना में टेक्स्ट जेनरेशन में केवल 100 बिलियन FLOP की आवश्यकता होती है। यह अंतर साफ दर्शाता है कि इमेज जेनरेशन कहीं अधिक ऊर्जा और संसाधन मांगता है।
नतीजा: रचनात्मकता की कीमत पर्यावरण चुका रहा है
AI और जनरेटिव टेक्नोलॉजीज ने रचनात्मकता को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। लेकिन इसके साथ यह भी साफ हो गया है कि इस क्रांति की कीमत हमारा पर्यावरण चुका रहा है। तकनीक जितनी तेज़ी से आगे बढ़ रही है, हमें उतनी ही समझदारी से इसका इस्तेमाल करना होगा।
यदि हम सच में तकनीक का लाभ उठाना चाहते हैं, तो हमें इसकी ऊर्जा खपत, संसाधनों की मांग और पर्यावरणीय असर को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। संयम के साथ तकनीक का इस्तेमाल ही एक संतुलित और टिकाऊ भविष्य की कुंजी हो सकती है।