
बढ़ती उम्र के साथ शरीर में कई तरह की बीमारियों का खतरा बढ़ता है और पार्किंसंस उनमें से एक है। यह एक न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारी है, जो शरीर की गति और संतुलन को प्रभावित करती है। पहले यह बीमारी आमतौर पर 60 साल की उम्र के बाद होती थी, लेकिन अब 40 साल की उम्र में भी इसके लक्षण दिखाई देने लगे हैं।
पार्किंसंस क्या है?
पार्किंसंस एक ऐसी स्थिति है जिसमें दिमाग की तंत्रिका कोशिकाएं (न्यूरॉन्स) धीरे-धीरे कमजोर हो जाती हैं या समाप्त हो जाती हैं। ये कोशिकाएं डोपामाइन नामक रासायनिक संदेशवाहक बनाती हैं, जो शरीर की गति को नियंत्रित करने में मदद करता है। डोपामाइन की कमी से दिमाग की सामान्य गतिविधियां प्रभावित होती हैं और धीरे-धीरे रोग के लक्षण सामने आने लगते हैं।
पार्किंसंस के सामान्य लक्षण
डॉ. उपासना गर्ग (रीजनल टेक्निकल चीफ, अपोलो डायग्नोसिस, मुंबई) के अनुसार, इस बीमारी के लक्षणों को अक्सर लोग उम्र से जुड़ी सामान्य कमजोरी मानकर अनदेखा कर देते हैं। लेकिन समय रहते पहचानने पर इसे बेहतर तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है। मुख्य लक्षणों में शामिल हैं:
हाथों में कंपन (विशेषकर आराम की स्थिति में)
शारीरिक गति में कमी
हाथ-पैरों में अकड़न
चलने-फिरने में असुविधा
बैलेंस बनाए रखने में परेशानी
गिरने की आशंका
बोलने और आवाज में बदलाव
इन लक्षणों में से कोई भी दिखाई दे तो तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।
पार्किंसंस के संभावित कारण
पार्किंसंस का कोई एक निश्चित कारण नहीं है, लेकिन शोध के अनुसार निम्नलिखित कारण इसके जोखिम को बढ़ा सकते हैं:
जेनेटिक फैक्टर
पर्यावरणीय कारण, जैसे जहरीले रसायनों का संपर्क
सिर पर चोट लगना
फैमिली हिस्ट्री
बढ़ती उम्र
इस बीमारी से संबंधित जटिलताएं जैसे कि गिरने से गंभीर चोट लगना या निमोनिया जैसी स्थितियां व्यक्ति के जीवन को और अधिक प्रभावित कर सकती हैं।
पार्किंसंस से कैसे बचाव किया जाए?
डॉ. गर्ग के अनुसार, समय रहते जांच कराने से बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए निम्न उपाय सहायक हो सकते हैं:
दवाओं के माध्यम से लक्षणों पर नियंत्रण
फिजियोथेरेपी और व्यायाम
संतुलित दिनचर्या और लाइफस्टाइल सुधार
न्यूरोलॉजिकल जांच, जैसे DaTscan (डोपामाइन ट्रांसपोर्टर स्कैन), MRI, और फैमिली हिस्ट्री की समीक्षा
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