
Up Kiran, Digital Desk: ओडिशा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर न केवल अपनी भव्य रथ यात्रा के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ भगवान को चढ़ाए जाने वाले 'छप्पन भोग' और उसके बाद मिलने वाले 'महाप्रसाद' के लिए भी जाना जाता है। यह परंपरा सदियों पुरानी है और भक्तों के लिए इसका गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है।
छप्पन भोग क्या है?
'छप्पन भोग' भगवान जगन्नाथ को दिन में अर्पित किए जाने वाले 56 विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का संग्रह है। यह भोग अत्यंत पवित्रता और समर्पण के साथ तैयार किया जाता है और इसमें मिठाइयों से लेकर नमकीन, चावल के व्यंजन, दालें, सब्जियां और विभिन्न प्रकार के व्यंजन शामिल होते हैं।
छप्पन भोग के पीछे की कहानी:
छप्पन भोग की परंपरा के पीछे कई किंवदंतियाँ हैं। सबसे लोकप्रिय कहानी भगवान कृष्ण से जुड़ी है। माना जाता है कि जब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाया था ताकि ब्रजवासियों को इंद्र के क्रोध से बचाया जा सके, तो उन्होंने लगातार सात दिनों तक भोजन नहीं किया था। जब उन्होंने गोवर्धन को नीचे रखा, तो यशोदा मैया ने सात दिनों के छूटे हुए भोजन के लिए दिन में आठ प्रहर के हिसाब से (7x8 = 56) 56 प्रकार के व्यंजन तैयार कर उन्हें खिलाए थे। इसी घटना की याद में भगवान जगन्नाथ को 56 भोग चढ़ाने की प्रथा शुरू हुई।
महाप्रसाद का महत्व:
एक बार जब भगवान जगन्नाथ को छप्पन भोग अर्पित कर दिया जाता है, तो उसे 'महाप्रसाद' का दर्जा मिल जाता है। इस महाप्रसाद को ग्रहण करना भक्तों के लिए अत्यंत शुभ और पवित्र माना जाता है। माना जाता है कि इसे ग्रहण करने से सभी पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह महाप्रसाद मंदिर के अंदर 'आनंद बाजार' में भक्तों को उपलब्ध कराया जाता है। यह प्रसाद बिना किसी जाति, पंथ या सामाजिक भेदभाव के सभी भक्तों द्वारा समान रूप से साझा किया जाता है, जो समानता और भाईचारे का प्रतीक है।
महाप्रसाद का एक और अनूठा पहलू यह है कि इसे मिट्टी के बर्तनों में पकाया जाता है और यह कभी भी बासी नहीं होता, चाहे कितनी भी देर तक रखा जाए। यह मंदिर की दिव्य ऊर्जा और प्रसाद की पवित्रता को दर्शाता है।
पुरी जगन्नाथ मंदिर का छप्पन भोग और महाप्रसाद सिर्फ भोजन नहीं, बल्कि भगवान के प्रति भक्तों की श्रद्धा, सांस्कृतिक विरासत और एक अनूठी परंपरा का प्रतीक है जो सदियों से चली आ रही है।
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