Up Kiran, Digital Desk: भारतीय सेना की दक्षिणी कमान आजकल एक बड़े और बेहद महत्वपूर्ण सैन्य अभ्यास में व्यस्त है। इस अभ्यास को 'त्रिशूल' नाम दिया गया है जो अपने आप में ही इसकी ताकत और उद्देश्य को बयान करता है। इसका मुख्य लक्ष्य हमारी तीनों सेनाओं थलसेना, नौसेना और वायुसेना के बीच बेहतर तालमेल और समन्वय स्थापित करना है।
इस पूरे मिशन को एक ख़ास कोडनेम दिया गया है: 'जय' (JAI)। यह नाम सिर्फ़ एक पहचान नहीं है, बल्कि एक व्यापक रणनीति को दर्शाता है। 'जय' का अर्थ है जॉइंटनेस यानी 'संयुक्तता', आत्मनिर्भरता और इनोवेशन यानी 'नवाचार'। सेना के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, यह अभ्यास साफ़ तौर पर दिखाता है कि भारतीय सशस्त्र बल तकनीक को कितनी गंभीरता से ले रहे हैं और भविष्य की चुनौतियों के लिए एक सक्षम, तकनीकी रूप से उन्नत बल बनाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं।
हर क्षेत्र में दबदबा बनाने की तैयारी
'त्रिशूल' अभ्यास मिशन एक नई दिशा का संकेत है। यह दिखाता है कि हमारे सशस्त्र बलों की बहु-क्षेत्रीय क्षमताएं लगातार बढ़ रही हैं। साथ ही रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण पर ज़ोर है। इस अभ्यास का इरादा कई मोर्चों पर एक केन्द्रीयकृत व्यवस्था को मज़बूत करना है। इसमें इलैक्ट्रॉनिक युद्ध, साइबर सुरक्षा, ड्रोन और ड्रोन-रोधी ऑपरेशन, ख़ुफ़िया जानकारी जुटाना, निगरानी और पहचान जैसी चीज़ें शामिल हैं। इसके अलावा हवाई रक्षा नियंत्रण और उसकी रिपोर्टिंग भी इसका एक अहम हिस्सा है।
यह अभ्यास ज़मीन, समुद्र और हवा के ज़रिए एक बेजोड़, एकीकृत सहयोग सुनिश्चित करने के लिए किया जा रहा है। इसका मक़सद भौतिक और आभासी दोनों ही क्षेत्रों में समान रूप से अपना प्रभुत्व स्थापित करने की तैयारी है।
'ऑपरेशन सिंदूर' के सबक भी शामिल
आज के युद्ध परिदृश्य में ड्रोन और मानवरहित प्रणालियों का इस्तेमाल तेज़ी से बढ़ा है। इन प्रणालियों को शामिल करके भारत अपनी युद्ध नीति को नेटवर्क-केंद्रित और स्वशासित युद्ध की दिशा में आगे बढ़ा रहा है। ऐसे युद्ध में सूचना, गति और सटीकता ही जीत की कुंजी होते हैं।

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