
महाराष्ट्र में एक बार फिर से भाषा को लेकर बहस छिड़ गई है, खासकर हिंदी को लेकर। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे ने इस मुद्दे पर गंभीर रुख अपनाया है और शुक्रवार सुबह 11 बजे अपने निवास ‘शिवतीर्थ’ पर पार्टी के प्रमुख नेताओं की बैठक बुलाई है। यह बैठक मुख्य रूप से नई शिक्षा नीति (NEP) और उसके राज्य में प्रभाव को लेकर होगी।
मराठी अस्मिता से जोड़ने की कोशिश
राज ठाकरे का मकसद इस बैठक के ज़रिए यह तय करना है कि मराठी समुदाय को इस भाषा विवाद के केंद्र में कैसे लाया जाए। उनका फोकस इस बात पर है कि किस तरह जनता के बीच जाकर हिंदी विरोध का मुद्दा उठाया जाए और कैसे मराठी लोगों और संगठनों को इसमें जोड़ा जाए। यह सिर्फ एक भाषा का विवाद नहीं, बल्कि मराठी अस्मिता और सांस्कृतिक पहचान से जुड़ा मामला बन चुका है।
राज ठाकरे की पहले से स्पष्ट चेतावनी
यह पहली बार नहीं है जब राज ठाकरे ने हिंदी भाषा को लेकर चिंता जताई हो। उनका कहना है कि स्कूली शिक्षा में पहली कक्षा से हिंदी को अनिवार्य बनाना गलत है। उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा, "हम हिंदू हैं, लेकिन हिंदी नहीं।" उनके अनुसार, अगर सरकार अपने फैसले से पीछे नहीं हटती तो संघर्ष तय है। यह बात वे पहले भी सार्वजनिक मंचों और सोशल मीडिया पर दोहरा चुके हैं।
तमिलनाडु की राह पर महाराष्ट्र
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत, 2025-26 से महाराष्ट्र के सभी मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा के रूप में पढ़ाया जाएगा। इसी तरह का विरोध तमिलनाडु में भी देखने को मिला था, जहां राज्य ने हिंदी थोपने के प्रयासों का विरोध किया था। अब महाराष्ट्र भी उसी राह पर चलता दिख रहा है।
संघर्ष की चेतावनी
राज ठाकरे ने गुरुवार को सोशल मीडिया पर खुलकर अपनी बात रखी। उन्होंने लिखा, "हम हिंदू हैं, लेकिन हिंदी नहीं। अगर महाराष्ट्र को जबरन हिंदीभाषी राज्य के रूप में पेश करने की कोशिश की गई, तो यहां संघर्ष निश्चित है।" उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि क्या यह सब कुछ आगामी चुनावों को देखते हुए मराठी और गैर-मराठी लोगों के बीच दरार पैदा करने की योजना है?
हिंदी को राष्ट्रीय भाषा मानने से इनकार
राज ठाकरे ने यह भी दोहराया कि हिंदी कोई राष्ट्रीय भाषा नहीं है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि फिर इसे महाराष्ट्र के बच्चों पर क्यों थोपा जा रहा है? उन्होंने ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा कि केंद्र सरकार का ‘त्रिभाषा फार्मूला’ अगर जरूरी है, तो उसे सिर्फ सरकारी कार्यों तक ही सीमित रखा जाए, शिक्षा में नहीं लागू किया जाए।
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