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Up Kiran Digital Desk: जब हिमालय की बर्फीली चुप्पी पिघलती है और घाटियों में हरियाली लौटती है, तब शुरू होती है एक ऐसी आध्यात्मिक यात्रा, जो न केवल धार्मिक महत्व रखती है बल्कि साहस, श्रद्धा और प्रकृति से जुड़ाव का जीवंत अनुभव भी कराती है — हेमकुंड साहिब यात्रा।

हर साल हजारों श्रद्धालु और ट्रैकर इस चुनौतीपूर्ण मगर पवित्र मार्ग पर निकलते हैं, जिसकी शुरुआत गोविंदघाट से होती है और जो हिमालय की ऊँचाइयों में बसे दुनिया के सबसे ऊँचे गुरुद्वारों में से एक — हेमकुंड साहिब — पर जाकर पूरी होती है। इस वर्ष यह यात्रा 25 मई से शुरू होकर 10 अक्टूबर तक चलेगी, जिसकी घोषणा हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा ट्रस्ट ने की है।

हेमकुंड साहिब: हिमालय में स्थित आस्था का धाम

4,329 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हेमकुंड साहिब केवल एक तीर्थस्थल नहीं, बल्कि एक ऐसी जगह है जहाँ सिख आस्था का संगम हिमालय की शांति से होता है। एक पारंपरिक कथा के अनुसार, सिखों के दसवें गुरु — श्री गुरु गोबिंद सिंह जी — ने अपने पूर्व जीवन में यहां ध्यान किया था। इस स्थान का उल्लेख दशम ग्रंथ में भी मिलता है।

यहाँ स्थित शांत और पवित्र हेमकुंड झील — जिसका शाब्दिक अर्थ है "बर्फ की झील" — तीर्थयात्रियों के लिए मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक बन चुकी है। झील के किनारे स्थित लक्ष्मण मंदिर, धार्मिक समरसता और सांस्कृतिक मिश्रण का सजीव उदाहरण है।

यात्रा मार्ग: गोविंदघाट से हेमकुंड साहिब तक

गोविंदघाट: यात्रा का प्रस्थान स्थल, जो ऋषिकेश, हरिद्वार और देहरादून से सड़क मार्ग से जुड़ा है।

पुलना तक सड़क मार्ग (4 किमी): यहाँ से मोटरगाड़ी जाती है।

पुलना से घांघरिया तक ट्रैक (13 किमी): ट्रैकिंग का पहला चरण, घने जंगलों और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर।

घांघरिया से हेमकुंड साहिब तक चढ़ाई (6 किमी): यह हिस्सा सबसे चुनौतीपूर्ण है, लेकिन सर्वोच्च आध्यात्मिक संतोष भी यहीं मिलता है।

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