धर्म डेस्क। आज देवशयनी एकादशी है। इस पर्व पर सनातन मतावलंबी व्रत रखते हैं। आज से ही सृष्टिकर्ता भगवान विष्णु चार माह तक शयन करेंगे। इस दिन व्रत के साथ ही देवशयनी एकादशी व्रत कथा का अति महत्व है। यह कथा धर्मराज युधिष्ठिर को भगवान श्रीकृष्ण ने सुनाई थी। मान्यतानुसार इस कथा को सुनने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। ये कथा इस प्रकार है ...
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम शयनी है। मैं उसका वर्णन करता हूं। यह एकादशी महान पुण्यमयी, स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करने वाली, और सब पापों को हरने वाली है। इसका व्रत करना अति उत्तम फल देने वाला होता है। जिन्होंने आषाढ़ शुक्ल पक्ष में शयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन और एकादशी का उत्तम व्रत किया है, उन्हें तीनों लोकों और तीनों सनातन देवताओं का पूजन करने के समान फल प्राप्त होता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने कथा सुनाते हुए कहा कि हरिशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु राजा बलि के यहां रहते हैं। वह क्षीरसागर में शेषनाग की शय्या पर तब तक शयन करता है, जब तक आगामी कार्तिक की एकादशी नहीं आ जाती। अतः आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक मनुष्य को अच्छे से धर्म का आचरण करना चाहिए। जो मनुष्य इस व्रत का अनुष्ठान करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है। इसलिए विधि पूर्वक और निष्ठा के साथ शयनी एकादशी का व्रत करना चाहिए।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि एकादशी की रात में जागरण करना चाहिए और शंख, चक्र और गदा धारण करने वाले भगवान विष्णु की भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने वाले पुरुष के पुण्य की गणना करने में चतुर्मुख ब्रह्माजी भी असमर्थ हैं। ऐसा करने से व्यक्ति के पुण्य कई ज्यादा गुणा बढ़ जाते हैं। जो इस प्रकार भोग और मोक्ष प्रदान करने वाले सर्वपापहारी एकादशी के उत्तम व्रत का पालन करता है, वह संसार में सदा मेरा प्रिय रहता है। इसी तरह जो मनुष्य दीपदान, पलाश के पत्ते पर भोजन और व्रत करते हुए चौमासा व्यतीत करते हैं, वे मेरे प्रिय हैं। चौमासे में भगवान विष्णु सोये रहते हैं, इसलिये मनुष्य को भूमि पर शयन करना चाहिये। सावन में साग, भादों में दही, कुवार में दूध और कार्तिक में दाल का त्याग कर देना चाहिये ।
भगवान श्रीकृष्ण ने कथा सुनाते हुए कहा कि जो व्यक्ति चौमासा में ब्रह्मचर्य का पालन करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है। एकादशी के व्रत से ही मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है। अतः सदा इसका व्रत करना चाहिए। कभी भी जानबूझकर इसे भूलना नहीं चाहिए । कथा के अंत में भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को यह भी बताया कि 'शयनी' और 'बोधिनी' के बीच में कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि ही गृहस्थों के लिए व्रत रखने योग्य हैं। अन्य मासों की कृष्ण पक्ष एकादशी गृहस्थ के व्रत रखने योग्य नहीं होती। शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत सभी गृहस्थों को रखना चाहिए।
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