img

Up kiran,Digital Desk : आज 24 नवंबर 2025 का दिन हिंदी सिनेमा के इतिहास में सबसे उदास दिनों में से एक के रूप में दर्ज हो गया है। 89 साल की उम्र में हमारे अपने 'ही-मैन' धर्मेंद्र जी ने दुनिया को अलविदा कह दिया। वो पिछले काफी समय से बीमार थे, लेकिन उनकी जिंदादिली देखकर लगता था कि वो मौत को भी चकमा दे देंगे।

धर्मेंद्र का जाना सिर्फ एक एक्टर का जाना नहीं है, यह एक ऐसे दौर का अंत है जब स्टार्स को स्टारडम के लिए सोशल मीडिया की जरूरत नहीं पड़ती थी। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनिया भर में इतना प्यार पाने वाले धरम पाजी के मन में एक 'टीस' हमेशा रही। वो टीस थी— 'बेस्ट एक्टर' का अवॉर्ड न मिलने की।

300 फिल्में, फिर भी बेस्ट एक्टर नहीं?

धर्मेंद्र ने अपने 60 साल से लंबे करियर में 300 से ज्यादा फिल्में कीं। उन्होंने हमें 'सत्यकाम' जैसी गंभीर फिल्म दी, 'शोले' का एक्शन दिया और 'चुपके-चुपके' जैसी बेहतरीन कॉमेडी भी। बावजूद इसके, उन्हें अपने करियर में कभी किसी बड़े मंच पर 'बेस्ट एक्टर' की ट्रॉफी नहीं मिली।

हालांकि, 1997 में उन्हें 'फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड' दिया गया था। वो पल बहुत भावुक था। यह अवॉर्ड उन्हें उनके आदर्श दिलीप कुमार और सायरा बानो ने दिया था।

हर साल सूट सिलवाता था, मैचिंग टाई ढूंढता था

जब उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड मिला, तो उन्होंने भरी आँखों से अपना दर्द बयां किया था। उन्होंने माइक थामकर बड़ी मासूमियत से कहा था, "मुझे काम करते हुए 37 साल हो गए। हर साल मैं एक नया सूट सिलवाता था, मैचिंग टाई ढूंढता था। मैं सोचता था कि शायद इस बार मुझे अवॉर्ड मिलेगा, लेकिन मेरा नंबर कभी आया ही नहीं। मेरी सिल्वर जुबली हुई, गोल्डन जुबली हुई, लेकिन अवॉर्ड नहीं मिला। फिर मैंने हार मान ली थी। मैंने सोचा था कि अब किसी शो में कच्छे-बनियान या टी-शर्ट में ही चला जाऊंगा।"

उनकी यह बात सुनकर वहां मौजूद हर शख्स की आंखें नम हो गई थीं और हॉल तालियों से गूंज उठा था।

51 रुपये से शुरू हुआ था सफर

पंजाब के एक सीधे-सादे लड़के का सफर 1960 में फिल्म 'दिल भी तेरा हम भी तेरे' से शुरू हुआ था, जिसके लिए उन्हें मेहनताना सिर्फ़ 51 रुपये मिला था। लेकिन देखते ही देखते 'फूल और पत्थर' जैसी फिल्मों से वो देश के पहले एक्शन किंग बन गए।

"लोगों का प्यार ट्रॉफी से बड़ा है"

बाद के सालों में धर्मेंद्र का नजरिया बदल गया था। उन्होंने कई इंटरव्यूज में कहा कि शुरुआत में अवॉर्ड न मिलना उन्हें बहुत चुभता था, खासकर 'सत्यकाम' और 'प्रतिज्ञा' जैसी फिल्मों के लिए। लेकिन बाद में उन्हें समझ आ गया कि ट्रॉफी तो शेल्फ पर रखी-रखी धूल खाती रहती है, लेकिन जनता का जो प्यार उन्हें मिलता है, वही उनका असली 'बेस्ट एक्टर' अवॉर्ड है।

आज जब वो हमारे बीच नहीं हैं, तो उनकी यह बात सौ फीसदी सच साबित हो रही है। धर्मेंद्र किसी ज्यूरी के मोहताज नहीं, वो लोगों के दिलों के राजा थे और हमेशा रहेंगे।