
Up Kiran, Digital Desk: आजकल डायबिटीज, जिसे हम आम भाषा में 'शुगर' भी कहते हैं, एक ऐसी समस्या बन गई है जो किसी को भी, किसी भी उम्र में हो सकती है। पहले लगता था कि ये सिर्फ बड़ों की बीमारी है, पर अब तो नौजवानों और बच्चों में भी इसका असर दिख रहा है। ये कोई ऐसी बीमारी नहीं है कि रातों-रात हो जाए, बल्कि धीरे-धीरे शरीर पर असर करती है। अगर इसे समय पर न समझा जाए और ध्यान न दिया जाए, तो ये शरीर के कई दूसरे अंगों के लिए भी परेशानी खड़ी कर सकती है।
आखिर ये डायबिटीज है क्या?
सीधे शब्दों में कहें तो, डायबिटीज एक ऐसी स्थिति है जिसमें हमारे खून में शुगर (ग्लूकोज) का लेवल बहुत बढ़ जाता है। ये तब होता है जब हमारा शरीर या तो पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बना पाता, या फिर जो इंसुलिन बनता है, उसका सही से इस्तेमाल नहीं कर पाता। इंसुलिन एक हार्मोन है जो हमारे शरीर के लिए बहुत ज़रूरी है। ये खाने से मिलने वाले ग्लूकोज को हमारे शरीर की कोशिकाओं तक पहुंचाता है, जहाँ से हमें एनर्जी मिलती है। जब इंसुलिन ठीक से काम नहीं करता, तो ये ग्लूकोज खून में ही जमा होने लगता है, जिससे ब्लड शुगर लेवल बढ़ जाता है।
डायबिटीज के मुख्य प्रकार
वैसे तो डायबिटीज कई तरह की होती है, लेकिन मुख्य रूप से तीन तरह की देखी जाती है:
टाइप 1 डायबिटीज: ये अक्सर बच्चों और युवा लोगों में होती है। इसमें शरीर का अपना ही इम्यून सिस्टम (रोग प्रतिरोधक क्षमता) गलती से उन कोशिकाओं पर हमला कर देता है जो इंसुलिन बनाती हैं। ऐसे में शरीर या तो बिल्कुल इंसुलिन नहीं बना पाता या बहुत कम बना पाता है। इसे जीवन भर इंसुलिन के इंजेक्शन लेने की ज़रूरत पड़ सकती है।
टाइप 2 डायबिटीज: ये सबसे आम है और ज्यादातर बड़े लोगों में देखी जाती है, हालांकि अब ये युवाओं में भी बढ़ रही है। इसमें शरीर इंसुलिन का ठीक से इस्तेमाल नहीं कर पाता (जिसे इंसुलिन रेजिस्टेंस कहते हैं) या फिर पैंक्रियास (अग्नाशय) पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता। इसका सीधा संबंध हमारी जीवनशैली, खान-पान, और मोटापा जैसी चीज़ों से है।
गर्भावधि डायबिटीज (Gestational Diabetes): ये टाइप की डायबिटीज अक्सर प्रेग्नेंट महिलाओं में होती है, खासकर दूसरी या तीसरी तिमाही में। ऐसा हार्मोनल बदलावों की वजह से होता है। अच्छी बात ये है कि बच्चे के जन्म के बाद ये अक्सर ठीक हो जाती है, लेकिन मां को आगे चलकर टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाता है।
पहचानें डायबिटीज के शुरुआती संकेत
कभी-कभी शरीर कुछ ऐसे संकेत देता है जिन्हें हम हल्के में ले लेते हैं। अगर आपको इनमें से कोई भी लक्षण दिखे, तो डॉक्टर से ज़रूर मिलें:
बार-बार पेशाब आना, खासकर रात में।
बहुत ज़्यादा प्यास लगना।
भूख ज़्यादा लगना, लेकिन वज़न कम होना।
थकान और कमजोरी महसूस होना।
आंखों की रोशनी का धुंधला होना।
चोट लगने पर उसका देर से ठीक होना।
त्वचा पर खुजली या संक्रमण का होना।
हाथ-पैरों में झुनझुनी या सुन्नपन महसूस होना।
डायबिटीज क्यों होती है? इसके पीछे के कारण
डायबिटीज होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं, और ये हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकते हैं:
पारिवारिक इतिहास: अगर आपके परिवार में माता-पिता या भाई-बहन को डायबिटीज है, तो आपको भी इसका खतरा बढ़ जाता है।
मोटापा और बढ़ा हुआ वज़न: खासकर पेट के आस-पास की चर्बी इंसुलिन के काम में रुकावट डाल सकती है।
गलत खान-पान: बहुत ज्यादा मीठा, तला-भुना, प्रोसेस्ड फूड और जंक फूड खाना।
शारीरिक गतिविधि की कमी: अगर आप ज्यादा समय बैठे-बैठे बिताते हैं और एक्सरसाइज नहीं करते, तो रिस्क बढ़ जाता है।
उम्र: 35-40 साल की उम्र के बाद टाइप 2 डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है।
तनाव: लंबे समय का तनाव भी ब्लड शुगर को बढ़ा सकता है।
डायबिटीज का पता कैसे लगाएं? (जांच)
डायबिटीज की पहचान के लिए डॉक्टर कुछ खून की जांचें करवाते हैं:
फास्टिंग ब्लड शुगर टेस्ट (FBS): यह खाली पेट (8-10 घंटे कुछ न खाने के बाद) की जाती है। अगर लेवल 126 mg/dL या उससे ज्यादा है, तो यह डायबिटीज का संकेत हो सकता है।
HbA1c टेस्ट: यह पिछले 2-3 महीनों के आपके औसत ब्लड शुगर लेवल को बताता है। अगर यह 6.5% से ऊपर है, तो यह डायबिटीज की ओर इशारा करता है।
रैंडम ब्लड शुगर टेस्ट: यह दिन में किसी भी समय किया जा सकता है। अगर लेवल 200 mg/dL से ऊपर है, तो डॉक्टर आगे जांच की सलाह दे सकते हैं।
क्या डायबिटीज को कंट्रोल किया जा सकता है?
हाँ, डायबिटीज को पूरी तरह खत्म तो नहीं किया जा सकता, लेकिन इसे कंट्रोल में रखना बिल्कुल संभव है। इसके लिए सबसे ज़रूरी है जीवनशैली में बदलाव:
संतुलित आहार: फल, सब्जियां, साबुत अनाज और लीन प्रोटीन को अपनी डाइट में शामिल करें। मीठी चीज़ों, कोल्ड ड्रिंक्स और जंक फूड से दूर रहें।
नियमित व्यायाम: हर दिन कम से कम 30 मिनट की कोई भी शारीरिक गतिविधि करें, जैसे चलना, दौड़ना, योग या कोई खेल।
वज़न पर नियंत्रण: अगर आपका वज़न ज़्यादा है, तो उसे कम करने की कोशिश करें।
नियमित जांच: डॉक्टर की सलाह पर नियमित रूप से अपनी ब्लड शुगर की जांच करवाते रहें।
याद रखिए, डायबिटीज को समझना और इसे अपनी लाइफस्टाइल का हिस्सा बनाकर जीना, आपकी सेहत के लिए बहुत ज़रूरी है। अगर आपको कोई भी लक्षण दिखें, तो बिल्कुल भी देर न करें और डॉक्टर से सलाह लें।
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