img

Up Kiran, Digital Desk: कोरोना महामारी का वो दौर हममें से शायद ही कोई भूल पाएगा। मास्क, सैनिटाइज़र और लॉकडाउन हमारी ज़िंदगी का हिस्सा बन गए थे। उस वक्त इस बीमारी के कई तरह के लक्षण सामने आ रहे थे, लेकिन सबसे आम और अजीब लक्षणों में से một था - अचानक सूंघने (गंध) और स्वाद लेने की क्षमता का चले जाना।

ज़्यादातर लोगों के लिए यह परेशानी कुछ हफ़्तों या महीनों में ठीक हो गई और उनकी सूंघने की शक्ति वापस लौट आई। लेकिन कुछ लोगों के लिए यह परेशानी महीनों, और अब तो कहना पड़ेगा कि सालों बाद भी पीछा नहीं छोड़ रही है।

एक नई रिसर्च ने बताई चिंता की वजह

हाल ही में हुई एक नई स्टडी में यह बात सामने आई है कि कोविड के कारण गई सूंघने की शक्ति कुछ लोगों में तीन साल या उससे भी ज़्यादा समय तक वापस नहीं लौटती है। कुछ मामलों में तो यह शायद कभी भी पूरी तरह से ठीक न हो। यह सुनकर हैरानी हो सकती है, लेकिन यह उन लाखों लोगों की सच्चाई है जो आज भी इस मुश्किल से जूझ रहे हैं।

यह सिर्फ़ नाक की समस्या नहीं है

वैज्ञानिकों का मानना है कि यह सिर्फ़ नाक में होने वाली कोई रुकावट नहीं है, बल्कि यह दिमागी स्तर पर हुई एक क्षति (damage) है। कोरोना वायरस ने नाक के ज़रिए हमारे दिमाग के उस हिस्से पर असर डाला जो गंध को पहचानने और समझने का काम करता है। यही वजह है कि कुछ लोगों में यह असर इतने लंबे समय तक बना हुआ है।

ज़िंदगी पर इसका क्या असर पड़ता है?

सूंघने की शक्ति का न होना सिर्फ अच्छी खुशबू न ले पाने तक सीमित नहीं है। इसका असर हमारी ज़िंदगी की गुणवत्ता (quality of life) पर पड़ता है:

खाने का मज़ा ख़त्म: लोग अपने पसंदीदा खाने का स्वाद और उसकी महक ठीक से नहीं ले पाते, जिससे खाने-पीने की इच्छा कम हो जाती है।

खतरों से अनजान: रसोई में गैस लीक होने, खाना जलने या घर में धुआं फैलने जैसी खतरनाक स्थितियों का भी उन्हें पता नहीं चल पाता, जो जानलेवा हो सकता है।

मानसिक स्वास्थ्य पर असर: लगातार किसी भी चीज़ की गंध न ले पाना इंसान को मानसिक रूप से परेशान कर सकता है और वह अकेलापन महसूस करने लगता है।

तो अगर आप या आपका कोई जानने वाला इस समस्या से आज भी जूझ रहा है, तो समझिए कि यह उनकी कल्पना नहीं है। यह कोरोना का एक लंबे समय तक चलने वाला असर है, जिस पर अब दुनियाभर के वैज्ञानिक और डॉक्टर ध्यान दे रहे हैं।